________________
जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २५।२६
तद्यथा
गिहमागओ य पुच्छइ कह लब्भा ? बंभयारिणो सुद्धा । चट्टो जम्पइ गाहं एयं जाणंतया सुद्धा ॥९८॥
"वसहिकहनिसिज्जइंदियकुडिंतरपुव्वकीलियपणीए । अइमाहारविभूसणाइ नवबंभचेरगुत्तीओ" ॥९९॥ [ सम्बो.प्र.गा.११६०] 5 गाहमिमं गहिऊणं सिट्ठी तो धम्मचारिणो सव्वे । पुच्छ न मुणइ को वि हु तीए गाहाए परमत्थं ॥१००॥
तो चट्टेणं नीओ साहूण विसुद्धबंभचारीणं । पासम्म तओ गाहा सम्मं वक्खाणिया तेहिं ॥ १०१ ॥
तो काउं पणिवायं सिट्ठी विन्नवइ अम्ह धूयाए । फिट्टइ गहो महायस ! जइ पेसह मुणिवरे चउरो ॥ १०२ ॥ सूरीहिं तओ भइ गिहत्थचिन्ता न कप्पए अम्ह । तो चट्टो वि पइम्पइ सीलड्ढा एरिसा हुन्ति ॥ १०३॥ चट्टेत्तो सिट्ठी इमाण नामेहिं होइ सिद्धि त्ति । नामाणि तओ लिहिउं धणो गओ निययगेहम्मि || १०४ || अह अन्न किन्हचउद्दसी इसाणमसाणमंडलविहाणे । मुणिबंभयारनामन्नासे मंतम्मि जवियम्मि ॥ १०५ ॥
धूया पउणीहूया जम्पर हा ताय ! कहमिहाणीया ? | किं वा मंडलमेयं कयं ? कहं ? बलिविहाणं ति ? ॥ १०६ ॥
तत्तो धणेण कहियं पुत्ति ! तुमं आसि उग्गग्गहगहिया । एएणं चणं दिन्नं तुह जीवियं वच्छे ! ॥ १०७॥ हरिसभरनिब्भरंगो सिट्ठी गेहे सपुत्तपरिवारो । पत्ते चट्टेण तओ नीओ मुणिपुंगवसमीवे ॥१०८॥ सोउं जिन्दिधम्मं सेट्ठी सम्मत्तनिच्चलो सड्ढो । जाओ मझुवआरी चट्टो एसो त्ति कलिऊण ॥ १०९ ॥
हारपहं नियधूयं परिणावइ तं महत्थरिद्धीए । एवं जिणदत्तेणं पत्तं कालेणं जं इट्टं ॥११०॥
Jain Education International 2010_02
३७७
For Private & Personal Use Only
10
15
20
25
www.jainelibrary.org