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जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २५।२६ वाहरइ तओ विज्जे जोइसिए मन्ततन्तकुसले य । सव्वोवायपओगे अविसेसे तेहि पडिसिद्धा ॥८५॥ सिट्ठी उव्विग्गमणो जा चिट्ठइ ताव तेण चट्टेण । पुट्ठो कि ? अज्ज दिणे दीसह गुरुदुक्खभरभरिया ॥८६॥ तो सिट्ठिणा वि भणियं दुहिया मे भद्द ! आवई पत्ता । उक्कलियाहि पयट्टइ पडिकूलं जलहिवेल व्व ॥८७।। विज्जाईहिं न सक्का पउणीकाउं विचित्ततन्तेहिं । लग्गो दुग्गग्गहो सो अवणिज्जइ जो न मन्तेहिं ॥८८॥ गहनिग्गहे समत्थो महमन्तो अत्थि किन्तु सामग्गी । पडिपुन्ना अइदुल्लहा इय भणियं तयणु चट्टेण ॥८९॥ अह सिट्ठिणा वि वुत्तं सव्वं सामग्गियं अहं काहं । ता मह उवरोहेणं कुणसु पसाएणिमं पउणं ॥९०॥ इसाणविदिसि चउदसितिहीए किन्हाए मंडले लिहिए । पिउवणमज्झे कज्जे सिज्झइ चउबंभयारीहिं ॥९१॥ तह चउधणुद्धरेहिं सुसद्दवेहीहि चउदिसिट्ठिएहिं । एवं चट्टेणुत्ते सामग्गि कुणइ धणसिट्ठी ॥१२॥ अह सिट्टी ससरक्खे गहिऊण धणुद्धरे य तह कन्नं । चट्टेण समं गच्छइ बलिपुप्फसुगन्धगन्धकरो ॥९३॥ जिणदत्तेण वि भणिया चउरो वि य सद्दवेहिणो लहुयं । सिवसद्दे विन्धेज्जह तं सदं कारया जडिणो ॥९४॥ काऊण बलिविहाणं मन्तं जा जवइ कित्तिमं चट्टो । स्वाहा अक्खरसवणे जडीहिं विहिओ सिवासद्दो ॥९५।। विद्धा जडिणो चउरो पलवइ कन्ना वि अइबहुं ताहे । चट्टेणुततो सिट्ठी न इमे बंभव्वए सुद्धा ॥९६।।। तो उवसग्गो एसो जाओ कन्ना वि पीडिया बहुं । सिट्ठी तओ विसन्नो ससरक्खेहिं अहं मुट्ठो ॥९७।।
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