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जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा ४।५।६
तो भद्दरायसुया विवाहामग्गिसंजुया तत्थ । पत्ता विन्नवइ मुणी जक्खाएसेण पणयपरा ॥६१॥ गुणमणिसायर मुणिवर मह पाणि पाणिणा इमं गिण्ह । एसा जक्खाएसा समागया मह विवाहत्थं ॥६२।। विसयसुहविरत्ताणं न बंभचारीण मुणिवराणेसा । कप्पइ कहा वि काउं पाणिग्गहणं कओ? भद्दे ! ॥६३।। मेहुणसंसग्गीए अग्गीए सीलकाणणं भद्दे ! । डज्झइ सिवसुहफलयं खणेण चिरकालरूढं पि ॥६४॥ मोहन्धाण जियाणं कामकहा होइ सुखहेउ त्ति । जेण पुण अमूढहियया दुहहेऊ तेहि सा चत्ता ॥६५॥ तम्हा अम्हसमीवे सिववहूसंगमरयाण न पुणो वि । वत्तव्वं वयणमिणं नृणमभदं ति नाऊणं ॥६६।। एवं निरीहवयणं सा पडिसिद्धा जणस्स पच्चक्खं । मुणिणा किं पवणेणं कणयगिरि चलइ पलए वि ? ॥६७॥ गंडीतिंदुगजक्खो रिसिरूवं छाइऊण दुल्ललिओ। परिणेउ रयणीए कीलइ विविहाहिं कीलाहिं ॥६८॥ पच्चूसे जक्खेणं मुक्काइन्ती घरम्मि नियपिऊणो । जणयइ चिन्तं गरुयं कह कायव्वि त्ति अहुणेसा ॥६९॥ नाउं रन्नो चित्तं रुद्देण पुरोहिएण तो वुत्तं । रिसिपत्ती दायव्वा रिसिचत्ता माहणाणं ति ॥७०॥ तो झत्ति नरिन्देणं एवं कालोचियं ति काऊण । साणन्देण वियन्ना सा रुद्दपुरोहियस्सेव ॥७१।। जक्खो वि मुणि निम्मलगुणगणसम्पत्तिरंजिओ निच्चं । आराहइ भत्तीए मन्नइ सुकयत्थमप्पाणं ॥७२॥ एयं मह वणगहणं एस्स मुणिस्स पायचारेण । सुमणोवियासपुव्वं सिवसुहफलदायगं होही ॥७३॥
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