________________
१९१
10
जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा ४।५।६
खीरकयम्बोज्झाओ पाढइ वेए नरिन्दकयपूओ। नियसुयपव्वय-नारयसहियं वसुनामनिवकुमरं ॥४॥ अन्नदियहम्मि तेसिं तिन्हं उज्झायपायमूलम्मि । वेयज्झयणरयाणं अब्भासेणं गयणमग्गे ॥५॥ वच्चन्तेहिं विज्जाचरणसाहूहिं भणियं वयणमिणं । एगो उढुंगामी नरयगई दोन्हमेएसि ॥६॥ खीरकयम्बो सुच्चा एवं संवेगमग्गमुवइन्नो ।
चिन्तइ मुणिन्दवयणं न अन्नहा होइ कइयावि ।।७।। यत उक्तम्
"बालया जं च जम्पन्ति, जम्पन्ति साहवो सच्चवाइणो । जाइ उप्पाइयाभासा न सा हवइ अन्नहा" ॥८॥[ ] तो एस उवज्झाओ खमाइगुणरयणरासिपडिपुन्नं । चारित्तजाणवत्तं आरुहिउं तरइ भवसिन्धुं ॥९॥ अहिचन्दनरिन्देणं नियरज्जे अहिसिंचिओ वसुपुत्तो । रज्जसिर उवभुंजइ विक्कमगुणनीईए अणुरत्तं ।।१०।। अह अन्नदिणेऽरन्ने, दिट्ठो पारद्धिएण हरिणजुवा । तो तम्मि झत्ति मुक्को पच्छाहुत्तं वलइ बाणो ।।११।। पुणो बाणो कहमेस वलिओ जो सव्वया वि अक्खलिओ । इय चिन्तन्तो पिच्छइ गन्तूणाऽऽयासफलिहसिलं ॥१२॥ तो वाहेणं रन्नो निवेइयं रायजोग्गमेयन्ति । तो पच्छन्नं राया आणावइ तं सिलं झत्ति ॥१३॥ सिप्पीणं समप्पइ तेहिं वि निप्पाइयम्मि रम्मम्मि । सिंहासणे निविट्ठो नज्जइ राया नहासीणो ॥१४॥ सच्चेणं चिय निच्चं चिटुइ गयणम्मि एस निवचंदो । एवं कित्तिनिमित्तं निवाइया सिप्पिणो सव्वे ॥१५॥ पव्वयग-नारया वि हु विहिणाऽवेइ निएसु गेहेसु । पाढन्ता सिस्सगणं निन्ति अणेहं सिणेहेण ॥१६॥
15
20
25
Jain Education International 2010_02
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org