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________________ १८१ 10 जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २।३ सोलसजक्खसहस्सा आएसं जस्स अमियलेसं व । मन्नन्ति अप्पमत्ता किंकरभावम्मि आसत्ता ॥५८॥ सुकयसहयारमञ्जरिसरिच्छलच्छीण नवनिहाणसिरी । सिद्धभरहे वसन्ते जस्सइगंगा सुहा होइ ॥५९।। सिरिचक्कवट्टीलच्छी सव्वंगविभूसणाइ रयणाइ । चउदस दसदिसिपसरियकित्तिलयाकन्दललियाई ॥६०॥ सव्वंगसुंदरीणं कन्दप्पनरिन्दरायहाणीणं । जस्स सुहिक्कखणीणं चउसट्ठी सहस्स रमणीणं ॥६१॥ चउरासीइलक्खा हयवरगयरायरणरहवराणं । पत्तेयं छण्णई अच्चुब्भडसुहडकोडीणं ॥६२॥ सो एस भरहनाहो पइदिणपरिवडमाणउच्छाहो । चिरकालं परिपालइ ललियंगो चक्कवट्टिसिरिं ॥६३॥ अन्नम्मि दिणे मज्जणदेवंगदुकूलविहियसिंगारो । सव्वंगभूसणधरो पविसइ दप्पणगिहं भरहो ॥६४।। अह तम्मि दप्पणतले पडिबिम्बियमप्पयं निहालन्तो । दतॄण कणिट्ठणंगुलिमसोहमाणि विचिन्तेइ ॥६५॥ "कहमेसा न रायइ ? सक्खं जा अंगुलि पलोएइ । मुद्दारयणविहीणं ता पासइ कंतपरिक्खीणं ॥६६॥ तत्तो भरहनरिन्दो चिंतइ साहावियं न सोहग्गं । जह एयाए तह किं ? अंगोवंगाण सेसाण ॥६७।। तत्तो जत्तो जत्तो भूसणमवणेइ एस नरनाहो । सूरि व्व अत्थमिन्ते जओ तओ अवेइ कन्ती वि ॥६८।। परिमुक्कसव्वभूसणमेयमसोहं सरीरयं दटुं । उच्छियपउमं व सरं वेरग्गं जाइ नरनाहो ॥६९॥ धिद्धी मह अन्नाणं जमिमस्स सरीरयस्स पावस्स । कज्जेण महारंभप्पसत्तया इत्तियं कालं ॥७०॥ 15 20 25 Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002561
Book TitleJayantiprakaranvrutti
Original Sutra AuthorMalayprabhsuri
AuthorChandanbalashreeji
PublisherShrutgyan Prasarak Sabha
Publication Year2008
Total Pages462
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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