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________________ ૧૧ आ त्रण श्लोकोथी विक्रम सं. १२६० ज्येष्ठवदी ५ श्रवणनक्षत्र श्रीमलयप्रभसूरिनो सत्ताकाल चोक्कस छे. एटले क्यारे ? अने कोणे रच्युं ते बाबत स्पष्ट थई. 'आ ग्रन्थनो विषय विभाग हेडींगथी जोई लेवो अने कथा अनुक्रमणिका जुदी तारवी छे ते जोई लेवी. २आ ग्रन्थमां पृष्ट २०३मां कपिलकथाना केटलाक श्लोको त्रूटक छे तेमज कलहपापस्थाननी कथामां पृ. २२२ अने २२३मां पण श्लोको त्रूटक छे तेनुं कारण ते विभागनुं ताडपत्रीय पुस्तक तद्दन घसाई गयेल छे तेथी जेटला अक्षरो वंचाणा तेटला दाखल कर्या छे बाकी श्लोको पादो तथा वाक्याने निरुपाये त्रूटता राखवा पड्या छे केमके कोई भंडारमांथी तेनी प्रत मली शकी नहि. आ ग्रन्थ पहेलवहेलो मुद्रित करायो छे माटे वांचको कोई जगोथी जयन्ती कथानी प्रत मेलवे तो ते त्रुटतो विभाग पूरो करी ले एवी विद्वानो प्रत्ये अमारी अभ्यर्थना छे. आ ग्रन्थमुद्रित कराववा पुण्यवंत उदारदील गुप्तदानेश्वरी महाशये बे हजार रुपीयानी मदद करी छतां असह्य मोंघवारी होवाथी केटलाक काल सुधी सोंघवारीनी आशाए काम बन्ध राख्यं, पण सोंघवारी थई नहि पण उलटी मोंघवारी खुब ज वधी, एटले तैयार करेल ग्रन्थ पडी रहेल, ते अमोने असह्य थई पड्यं. तेथी अमोए निर्णय कर्यो के... मोंघवारीमां पण ग्रन्थप्रकाशननुं कार्य शरु राखवुं, एटलामां प.पू. आचार्य भगवन्तनुं चौमासु थरा गाममां नक्की थयुं. अमोए जणाव्यं के... जयन्तीचरित्रनुं प्रकाशनकार्य करवानो अमे निश्चय कर्यो छे काम शरु थवुं जोईए. परमोपकारी श्रीआचार्य भगवन्ते अमारी विनंती स्वीकारी उत्तर आप्यो के...जयन्तीना प्रकाशनकार्यमां धर्मरागी श्री थरा जैनसंघज्ञानखातामांथी आठसो रुपीयानी मदद करे छे, तेथी अमो खुश थया. ग्रन्थप्रकाशननुं कार्य शरु कर्यु, अनुक्रमे ते कार्य पूर्ण करी शक्या, तेथी आ ग्रंथना प्रकाशनकार्यमां मदद करनार पुण्यवंत गुप्तदानेश्वरी महाशयनो तथा श्री थरा जैनसंघनो आभार मानीये छीए. अने पू. आचार्यदेवनो उपकार जेटलो मानीए तेटलो ओछो ज छे. केमके आ ग्रन्थनुं तमाम काम ते पूज्यश्रीए पूरुं पाड्युं छे. छेवटे विद्वान महाशयो प्रते जणावीए छीए के - आ प्राचीन साहित्यने पठन-पाठनमा लई अमारो अभिलाष पूर्ण करशो. १. नवीनसंस्करणमां विषयविभाग विषयानुक्रमणिकामां आपेल छे अने कथा अनुक्रमणिका परिशिष्ट४ मां आपेल छे. २. लि. पं. मणिविजयजी गणिवर ग्रन्थमालाकार्यवाहक मास्तर न्हालचंद ठाकरशी मु. लींच (वाया महेसाणा ) ता. २५-८-५० नवीनसंस्करणमां पृष्ठ २५०थी २५३मां कपिलकथाना केटलाक श्लोको त्रूटक छे तेमज कलहपापस्थाननी कथामां पृष्ठ २७४थी २७६मां पण श्लोको त्रूटक छे. Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002561
Book TitleJayantiprakaranvrutti
Original Sutra AuthorMalayprabhsuri
AuthorChandanbalashreeji
PublisherShrutgyan Prasarak Sabha
Publication Year2008
Total Pages462
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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