SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्टम्-२२, जैनेन्द्रसिद्धांतकोशसंकलितध्यानस्वरूपम् २७१ आलम्बनसे और वस्तुके यथार्थस्वरूप चिन्तवनसे यामप्रत्याहारधारणाध्या-नसमाधय इत्यष्टावङ्गानि उत्पन्न हुआ ध्यान प्रशस्त है ।२९। (विशेष दे० योगस्य स्थानानि।१। तथान्यैर्यमनियमावपाधर्मध्यान/१/१)। ३. रागादिकी सन्तानके क्षीण स्यासनप्राणायामप्रत्या-हारधारणाध्यानसमाधय होनेपर अन्तरंग आत्माके प्रसन्न होनेसे जो अपने इति षट् ।२। उत्साहानिश्चयाद् धैर्यास्वरूपका अवलम्बन है, वह शुद्धध्यान है।३१। त्संतोषात्तत्त्वदर्शनात्। मुनेर्जनपदत्यागात् (दे० अनुभव)। षड्भिोग: प्रसिद्ध्यति ।१। कई अन्यमती 'आठ [२.] ध्यान निर्देश अंग योगके स्थान हैं' ऐसा कहते हैं- १. यम, २. नियम, ३. आसन, ४. प्राणायाम, ५. प्रत्याहार, (१.) ध्यान व योगके अंगोंका नाम निर्देश ६. धारणा, ७. ध्यान और ८. समाधि। किन्हीं ध. १३/५,४,२६/६४/५ तत्थज्झाणे चत्तारि अन्यमतियोंने यम नियमको छोडकर छह कहे हैंअहियारा होंति ध्याता, ध्येयं, ध्यानं, ध्यान १. आसन, २ प्राणायाम, ३. प्रत्याहार, ४. धारणा, फलमिति। ध्यानके विषयमें चार अधिकार हैं - ५. ध्यान, ६. समाधि। किसी अन्यने अन्य प्रकार ध्याता, ध्येय, ध्यान और ध्यानफल । (चा.सा./ कहा है- १. उत्साहसे, २. निश्चयसे, ३. धैर्यसे, १६७/१) (म. पु./२१/८४) (ज्ञा./४/५) (त. ४. सन्तोषसे, ५. तत्त्वदर्शनसे, और देशके त्यागसे अनु./३७)। योगकी सिद्धि होती है। म. पु./२१/२२३-२२४ षड्भेदः योगवादी यः (२.) ध्यान अन्तर्मुहूर्तसे अधिक नहीं टिक सोऽनुयोज्य: समाहितैः। सकता योगः कः किं समाधानं प्राणायामश्च ध. १३/५,४,२६/५१/७६ कीदृशः।२२३। का धारणा किमाध्यानं किं ध्येयं कीदृशी स्मृतिः। अंतोमुहुत्तमेत्तं चिंतावत्थाणमेगवत्थुम्हि। किं फलं कानि बीजानि प्रत्याहारोऽस्य छदुमत्थाणं ज्झाणं जोगणिरोहो जिणाणं तु ॥५१। कीदृशः।।२२४।। एक वस्तुमें अन्तर्मुहूर्तकालतक चिन्ताका अवस्थान जो छह प्रकारसे योगोंका वर्णन करता है, उस होना छद्मस्थोंका ध्यान है और योगनिरोध जिन योगवादीसे विद्वान्, पुरुषोंको पुछना चाहिए कि योग भगवान्का ध्यान है ।५१। क्या है ? समाधान क्या है? प्राणायाम कैसा है? त.सू./९/२७ ध्यानमान्तर्मुहूर्तात् ।२७। धारणा क्या है? आध्यान (चिन्तवन) क्या है? स. सि./९/२७/४४५/१ इत्यनेन कालावधिः ध्येय क्या है? स्मृति कैसी है? ध्यानका फल कृतः। तन्नः परं दुर्धरत्वादेकाग्रचिन्तायाः। क्या है? ध्यानका बीज क्या है? और इसका रा.वा./९/२७/२२/६२७/५ स्यादेतत् ध्यानोपयोप्रत्याहार कैसा है? ।२२३-२२४ । गेन दिवसमासाद्यवस्थानं नान्तर्मुहूर्तादिति; तत्र ज्ञा./२२/१ अथ कैश्चिद्यमनियमासनप्राणा ___ Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002560
Book TitleDhyanashatakam Part 2
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages350
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy