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________________ १९८ [ ढाल - ८ राग निज अक्षय सुखनो कार रे लाल; ध्यान धरो निज धर्मनो जसु फरसे शुचि थाये धरा, शिवमारग दाखणहार रे लाल । ध्यान० १ जितो रवि भामंडले, ए देव अनाथां नाथ रे लाल; - वाह वाह वायो विंझणो. एहनी] पडतां दुःख समुद्रमें, एहिज साहिब दे हाथ रे लाल । ध्यान० २ थिति सिंहासन उपरे, धरि छत्रत्रयनी शोभ रे लाल; सुरपति चामर विंझवे, क्षय कीधो रागने लोभ रे लाल । ध्यान० ३ पुष्पवृष्टि सुरदुंदुभि, वली वृक्षअशोके युक्त रे लाल; अड प्रातिहारजकरी, शोभे वीतराग विमुक्त रे लाल । ध्यान० ४ Jain Education International 2010_02 शुक्लध्यानी शांत छे, भवदुःख हरे गतराग रे लाल; एक सनातन व्यक्त छे, गतकामी ए शिव मान रे लाल । ध्यान० ५ जगचक्षु जगनायक धणी, ए ज्योतिरूप आनंद रे लाल; ईश चतुर्मुख कृष्ण ए, एहिज जिन आतम संत रे लाल । ध्यान० ६ सिद्ध सुमति जगज्येष्ठ ए, मुनिवर अक्षर गुणधार रे लाल; निरागी जिन सर्वज्ञ ए, ध्रुव अव्यय जीर्ण उदार रे लाल । ध्यान०७ इम एकत्व प्रतीतसु, ध्यानी थावे शिवरूप रे लाल; जिण जाएयां मुनिवर शिव लहे, आराध्यो ते गुणभूप रे लाल । ध्या० ८ आतम अमृतस्वादथी, अक्षयपद लहे कर्म रे लाल; भव्यकमल रविसारिखो, निश्चल भजिज्यो तजी भर्म रे लाल । ध्यान० ९ आतम आतमज्ञानसु, निश्चयथी परमानंद रे लाल; परमज्योति गुणरंजीयो, मनि ध्यावे ध्रुगुणचंद रे लाल । ध्यान० १० आतमज्ञान अमृतथकी, थिर मुनि नवि चूके ध्यान रे लाल; ज्ञान राज त्रयभुवननो, ते सुख आगमनो थान रे लाल । ध्यान० ११ निरमल चित्त थया मुनि, निज आतमज्ञानथी पीन रे लाल; निज व्यय गुणने अनुभवे, थाये तन्मय गुणलीन रे । ध्यान० १२ तन्मय आतमध्यानथी, मुनि पामे केवलज्ञान रे लाल; परमातम शिवरूपी हवे, तिण धरी परमातमध्यान रे लाल । ध्या० १३ ए आतम निजशक्तिथी, पामे निरमल निज नाण रे लाल; एह अज्ञानताभावमे, सहु लोक भमे विणु ठाण रे लाल । ध्यान० १४ ध्यानशतकम् For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002560
Book TitleDhyanashatakam Part 2
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages350
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size19 MB
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