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________________ १६६ ध्यानशतकम् प्रसनचंद्र राजऋषि, देख दुर्ध्यानथी, सातमी नरकने, योग्य थाये; ध्यान रुडे वली, ते थया केवली, अनुक्रमे मुगति वर, नयरे जाये, ध्यान० ।।२।। भोग सेव्या नथी, तोहि दुर्ध्यानथी, द्रमकपरे जीवडो, नरक पामे; भोग पण भोगवी, ध्यान शुभ जोगवी, भरत भूपाल परे, पाप वामे, ध्यान० ।।३।। जप विना तप विना, ध्यान शिवसुख दीये, ध्यान विण मुगति, जप तप न देवे; ध्यान इम मुक्तिनु, परम कारण सुणी, वरमुणि बहुगुणी, ध्यान सेवे, ध्यान० ।।४।। अवर वर गुण विना, ध्यान आवे नहीं, कहवि आवे तदा, घर न थोभे; ते भणी नाणदंसणचरणगुण धरी, ध्यान शुभ आदरी, साधु शोभे, ध्यान० ।।५।। ऋद्धि जिम पुण्य विण, कीर्ति जिम दान विण, वृक्ष जिम नवि रहे, मूल पाखे; गेह पाया विना, थिर न थोभे यथा, गुण विना ध्यान तिम, संत दाखे, ध्यान० ।।६।। जिन वचन अनुसरी, कुमतिथी निसरी, शुद्ध समकित धरी, दुरित छंडो; चरणगुण आदरी, चित्त चोखुं करी, सार समता धरी, ध्यान मंडो, ध्यान० ।।७।। एणीपरे ध्यान सुंदर सदा सेवता, पाप संताप सवि, दूर जाये; ज्ञान पंचम महोदय रमा पामीये, सकल कामिततणी, सिद्धि थाये, ध्यान० ।।८।। श्रीतपागच्छ सोहाकरो गणधरो, श्री हीरविजयोगुरु युगप्रधानो; देशना जस सुणी, शाहि अकबर गुणी, धर्म कामे थयो, सावधानो, ध्यान० ।।९।। तास पाटे विजय सेनसूरीसरू, श्री विजय तिलकसूरी तास पाटे; तास पाटे विजयानंदसूरीश्वरु, विजयवंतो सदा, धर्म माटे ध्यान० ।।१०।। श्री विमल हर्ष उवज्झाय श्री मुनिविमल, सकल वाचक शिरोमणि विराजे शिष तस भावविजयो भणे सेवीये, ध्यान सुरतरु सदा, सिद्धि काजे, ध्यान० ।।११।। वर्षधर निधि सुधा, रुचिकला संवत्सरे, चैत्र वदी दशमी, रविवार संगे; ध्यान अधिकार अविकार सुखकारगो, खंभनयरे रच्यो, चित्तरंगे, ध्यान० ।।१२।। इति पूज्यपादमुनिभावविजयकृत-श्रीध्यानस्वरूपणप्रबन्धः । Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002560
Book TitleDhyanashatakam Part 2
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages350
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size19 MB
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