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________________ Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ભાંડારકર ઓરીએન્ટલ રીસર્ચ ઈન્સ્ટિટ્યૂટ, પૂના પ્ર. નં. ૧૦૭૪ L = आवश्यनिर्युक्ति, हारिभद्रीयवृत्ति ਅੰਗਹਿ ਸਾਧ रु.१० २७५ एई। नमः सर्वज्ञाय प्रशिए जिन रे। सन् श्रापकम्पविज्ञान परमं ॥ यद्यप्रिमयात्मान्यः तामाशा धान ना किया नया ॥ ३शया मायकाः प्रयाननादिरहितचा कंटक शारदामन व शिल्प व माद्या काय नवरात्रायाजा नादिरनन् पावनोत्पला रिचित मंगल शास्त्र राज्य शमित्यादि। श्रतः याजनमतिमा सं धाम पर वन प्रिया अन्य राशन के कई श्रोता मिया (लाना या मागमस्मार वांगीन कवि मानकदाचितविष्यनिकशविचतान्यादिवचनात्पर्या या त्रिकनया लाबनाया वानित्यश्वाशमा नि वानरूपा रागमस्यामपिया नित्या ३२ नारा निन्यविका मिनि ॥ कः परमपवर्गप्राशि पर म है । प्रनिपादयि किं प्रयाजनमिनिकि विकृत अन्य चान्॥ याजनमंशा राई अनि यातयामाशु इत्रिनयनार्थकर नामा कर्म विपाकानि ॥ अगला दिन एरी दि॥ इत्यादिना ॥ श्राभिगमः परेषुनिक ज्ञान क्रियान्या क्षत्रन्यचाव शाकमिति नामविशिष्ट ज्ञाना किया बापजायत। त्रकार श्वान दात्रः तदवापर क्रिमिधिरित्यतः। प्रयाजनाना कायकार प्रथम निषि सामायिका दिन मंत्रोपयायाप्रति शर्व। प्रेममा वीतरागा ॥ यनमः।-K मिनियममा निरामयत्यारिना मामाज्ञामपि चित्र:मंयतः यावान्मान एव नि ॥ यस्मा यांमिनी धियां निविनायका । श्राका योग वग्रस शनि मंस्यादो मनमा मंगलमित्यादवा मंगलयायुक्त प्रयाजनासावादिनीव ॥ प्रयाजनानास्यामि नाम विनया विचा त्रिपुरा मोदि भगजोयन्या माता सदारः म्यादिन्यनाम प्रियाविज्ञास्यि नाशिनेर्मस्य क्रिया या शिनिप्रदोन नानामप्रायाजनादिपरिज्ञानाय स्वा/दो माया जनाद्यन्यासयनित्यः मापा म मनिश्वयर्चिकायासनादी क्रिमिनागिन शास्त्रास्यना शिर्शिना कृषी जलादिवदित्यन ।। मयामि विज्ञानि ॥ सर्वानिमहतामपि ॥ श्राश्रमांका मासदी सेवि विनायका प किरिया हिंग काइयानिका मामितिः क्रियानि मा पारश निर्यातदार की चिकित्यादिनाथ का यननित्राका विकी तथा सा नविन कायिकी: प्रतिहिन का मिकी उपरत काशिकी ॥ मियाह र विश्वसम्पद्या श्रविरन म्यका थि॥ का अक्षया दिश कर्म निबंधन कार्यक॥ मन्यत्रासमा मान्याताः । द्वितीया लिनिकायका मन्त्रयनस्य मात्र नात्रिः प्रतिहि द पिका की । एन इंद्रिये मनमाडुः॥प्रलिहिन म्या श्रलका दिन एका विकानी यात्रा मन संयनम्प पर स्पा यः मारद्याया गे या निकायका अधिकियाना श्रात्मानरका दिन नदधिकरावा चक्रम हा तिन निर्धाधिकरणका निर्वर्जनानिनीन रादौरान मोनाषिगताधिकर शिका प्राधाषामा चक्कनपनि। निर्वभौरव का दिन निक 'राजननिर्वृना प्रामिक यात्र मावजी प्रकाश आयाजी वा छतः द्वितीया नर जीवनवाहि पाधाप्रमन जिनकान्द्रा मावहनि ॥ नाना या की गाहामा समुद्दिजिवनाममा एहिकमा बिसाल १०६ म प्रेम ताडनादिनाडुः खर्भशामलक्ष्यतनित्रापास्ता पनिकीत सामविद्विरिस्वाद हरिसायनिका पर दिहरिनापनि काम म्रा चास्त्र दिहितापनं कुर्वननायापरा हरिनामाचान्यरु पिस्वाद परितापः॥ म्रास्त्र हरिनाम निका पर हस्त्रय सानिका श्राद्यास्वामा परि नापने ॐ मनापास्न कारयतः॥ मना निपातः प्रागः।। नया किया जाएगा क्रियान या ॥ मायपि विप्रानियान किया जामीया रानिपानं अर्वनः। द्वितीया परनिपानमितिमाचक्तविर्विदनः स्वर्गाकप्रियतादि नान करानाका मान माया खानामा दुवा जागा निकन मिनिका भनाष्टोमा न्यायति मानने जात्यादितिहासितः माया का थिए विश्वमनाला निनामो का रिकाः ॥ माहिनस मारामानेकः समागत्रया या गइ नि॥ गतापरमा किया विकारा शिनिया उपमन्यपितंजि क्रिया: प्रदर्शन॥२॥ खारेनिया १ २०१ मरिना। tatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatata ७१ हस्तलिखितप्रतो
SR No.002559
Book TitleDhyanashatakam Part 1
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages302
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size18 MB
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