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द्वितीयं धर्मलाभद्वारम्
सुच्चा ते जियलोए, जिणवयणं जे नरा न याणंति । सुच्चाण वि ते सुच्चा, जे नाऊणं न वि करंति ॥१८६॥ किं च इमं दुनिमित्तं, मह परमाणंदकारणं जायं । जं नायनियडमरणा, बाढं धम्मे जइस्सामि ॥१८७॥ इय भणिऊणं देवी, नियभीरुत्तं च अप्पिअं रन्नो । अभया गया सभवणं, राया वि पियामरणभीओ ॥१८८॥ अह अन्नदिणे देवी, विहियसिणाणा समाइसइ दासिं । अप्पेसु धोयपुत्तिं, अह तीए अप्पिया जाव ॥१८९।। तो दिट्ठा सा रत्ता, सिया वि देवीइ तो भणइ पावे !! जिणभुवणे चलियाए, कहमप्पसि रत्तवत्थाई ॥१९०॥ इय कोवपरवसाए, देवीइ करत्थदप्पणेण इमा । संखाणियाइ पहया, चक्केण व तो मया ज्झत्ति ॥१९१॥ दासि दट्टण मुयं, जह वत्थाइं च ताइँ वत्थाई । देवी गया विसायं, संसारविरत्तचित्त व्व ॥१९२॥ चिंतइ य निरवराहा, हा हा दासी इमा मए पहया । चिरपालियं पि भग्गं, पढमवयं पक्कभडं व ॥१९३।। नरयगई निद्दिवा, सुयम्मि पंचिंदियस्स वहणाओ । लोए वि इत्थिहच्चा-पावं निसुणिज्जइ महंतं ॥१९४॥ ता वत्थस्सेव जलं, कणयस्स व हुयवहम्मि पक्खेवो । वयमेव मज्झ अहुणा, सव्वत्तो निम्मलीकरणं ॥१९५॥ इच्चाइ विमरिसेउं, निवस्स तमरिठ्ठदंसणं कहइ । पढमव्वयस्स भंगं च, चेडियापाणघायाओ ॥१९६॥ "पभणइ पुणो वि देवी, दिट्ठमरिष्टुं तया तए एगं । बीयं पुण अज्ज मए, ता नायं नत्थि मे जीयं ॥१९७।। जइ तुज्झ वल्लहा हं, ता अणुमन्नेसु नाह पसिऊण । जं वयगहणं काउं, निरवज्जा होमि अचिरेण ॥१९८॥
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