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अष्टमं सद्धर्मफलद्वारम्
संखं धमिज्ज नवरं, नाइधमिज्जा न सुंदरं जेण । जं धमणाओ लद्धं, अइधमणाओ गयं तं पि ॥१०५५॥ ता सामिय ! अइयारो, तुज्झ वि काउं न जुज्जइ इत्थ । अम्हे वि किं पि मन्नसु, मा अवगन्नसु उवलकढिण !" ॥१०५६।। "तो जंपइ जंबुपहू , तं पि पियं अंबुसीयलगिराए । सेलेयवानरो इव, न बंधणे हं पडिस्सामि ॥१०५७।। सुमसु पिए ! विंझगिरी, अत्थि अवंझो सया वणसिरीए । वानरजूहाहिवई, तत्थेगो वानरो आसी ॥१०५८।। कुमरु व्व विंझगिरिणो, कीलइ वणकंदरेसु सिच्छाए । मारइ य जूहजाए, सो अवरे वानरे सव्वे ॥१०५९॥ सह वानरीहि एगो, सु च्चिय विलसइ महाबलो नन्नो । वित्थारंतो तत्थ य, इत्थीरज्जस्स सुहलिलं ॥१०६०॥ अह को वि वानरजुवा, अन्नदिणे तत्थ आगओ एगो । सो वानरीण विंदं, तं पिक्खिय जूहमणुलग्गो ॥१०६१॥ कीसे वि वानरीए , चुंबइ चिरपरिचउ व्व सो वयणं ।। 15 बिल्लदलबीडियाओ, कीसे विमुहम्मि पक्खिवइ ॥१०६२।। गुंजामयं च हारं, काउं कंठम्मि देइ कीसे वि । केयइरेणुहि सयं, कीसे वि मुहं च पिंजरइ ॥१०६३॥ एवं वानरनारीहि, ताहिं सह सो रमेइ निस्संकं ।। तासिं जूहाहिवइं, अमुणंतो इव भुयबलेण ॥१०६४॥ अह वानरीहि काहि वि, तं वियरिज्जंतसहमरोमचयं । काहि वि वीइज्जंतं, कदलीदलतालियंटेहि ॥१०६५॥ काहि वि नहंकुरेहिं, कंदूइज्जंतदीहलंगूलं । काहि वि कयावयंसं, कोमलनालेहि नलिणीए ॥१०६६।। तुंगगिरिसिंगचडिओ, स जूहनाहोऽह वानरजुवाणं । तं तह दटुं सहसा, कोवंधो धाविओ ज्झत्ति ॥१०६७॥
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