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श्रीधर्मविधिप्रकरणम् हवउ इमं ति भणित्ता, भयभीओ सो जु(उ)वागओ ठाणे । तो दुग्गिला वि गंतुं , सुत्ता नियभत्तुणो पासे ॥८६२॥ गाढालिंगणपुव्वं, पडिबोहिय धीमई पइ भणइ । पिययम ! ममेह धम्मो, ता एहि असोगवणियाए ॥८६३।। उट्ठिय पई वि अज्जो, असोगवणियाइ तीइ सह पत्तो । सा तत्थेव पसुत्ता, पइमालिंगिय उववई व ।।८६४॥ सो तक्खणेण तत्थ वि, सुत्तो सरलासओ पई तस्स । अह सा वि कवडनिद्दा, घंघलिया उट्ठवेइ पियं ॥८६५॥ तत्तो नडि व्व गोविय-आगारा सा पियं पयंपेइ । कंत ! कुले तुह कोयं, आचारो सिट्ठजणबज्झो ॥८६६॥ आलिंगिऊण तुममिह, एवं सुत्ताइ पिक्खि ताएण । मह चरणाउ इमाओ, आगरिसिय नेउरं गहियं ॥८६७॥ जुज्जइ न अन्नयावि हु , वहुया ससुराण फरिसिउं नाह ! । किं पुण सुरयट्ठाणे, पइमालिंगियपसुत्ताए ॥८६८॥ तो भणइ देवदिन्नो, पिए ! पभायम्मि पियरमहमेयं । तुज्झ निरिक्खंतीए, सोवालंभं भणिस्सामि ॥८६९।। सा भणइ संपयं चिय, पिय ! जंपसु तायमुट्ठिऊण तुमं । अन्नह परपुंसा सह, सुत्तं कल्ले ममं कहिही ॥८७०॥ सो जंपइ सुवसु पिए !, मह पिक्खंतस्स नेउरं गहियं । इय तायमक्खिविस्से, इत्थत्थे तुज्झ बीओ हं ॥८७१॥ अह जायम्मि पभाए, स देवदिन्नो पयंपए पियरं । कह ताय ! तए वहुया-चरणाओ नेउरं गहियं ॥८७२॥ थविरो पभणइ एसा, दुस्सीला वच्छ ! तुह वहू नूणं । परपुंसा सह दिट्ठा, असोगवणियाइ निसिसुत्ता ॥८७३।। दुस्सील च्चिय एस, त्ति तुज्झ पच्चयकए वच्छ ! । वहुयाचरणाउ सयं, नेउरमाकरसियं एयं ॥८७४।।
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