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अष्टमं सद्धर्मफलद्वारम्
देवत्ताओ अहियं, सुहमम्हं इत्थ किं सुरत्तेण । निच्चं अविउत्ताइं, सवसाई जेण विलसामो ॥ ७७१ ॥ एवं ताइ पियाए, वारिज्जतो वि वानरनरो सो । सुरधी वंजुलाओ, झंपावर पुव्वमिव तत्थ ॥७७२॥ तत्थ य तिरिओ मणुई - भूओ तह माणसो सुरी भूओ । तित्थगुणाउ स एव हि, हवेइ जइ निवडइ पुणो वि ॥ ७७३ || इय सो तम्मि वितित्थे, सुरत्तबुद्धीइ दिन्नझंपो वि । पुव्वभववानरत्तेण, वानरो हवइ तह चेव ॥ ७७४। सा नारी पुण पुन्निम-चंदमुही मुट्ठिगिज्झतणुमज्झा । करिकुंभसमनियंबा, विहसियपउमाभकरचरणा ॥७७५ ॥ गंगामट्टियतिलया, वल्लीसंजमियकुंतलकलावा । तालदलकुंडलधरा, वणकेयइविहियउत्तंसा ॥ ७७६॥ कयनलिणिनालहारा, मुणालतंतू व रहयभुयवलया । दिट्ठा परिभमिरेहिं, तत्थागयरायपुरिसेहिं ॥ ७७७৷৷ अह गिहिऊण ते तं, गंतु अप्पंति निययनरवइणो । जं जं असामियं इह, तं तं सव्वं हवइ रन्नो ॥७७८॥ तेणावि असमरूवा, सा अंतेउरसिरोमणी विहिया । जं लक्खणवंताणं, लच्छीओ हुंति अतिहीओ ||७७९॥ सो वानरो वि केहि वि, तत्थागयनडनरेहि गहिऊण । बहुविहभंगं नट्टं, सिक्खविओ तेहि तणउ व्व ॥७८०॥ अन्नदिणम्मि नडा ते, पत्ता तस्सेव निवइणो पासे । तं नच्चयंति वानर - मवसरकरणुज्जया तत्थ ॥७८१ ॥ अद्धासणम्मि रन्नो, आसीणं पिक्खिऊण तं कंतं । रोएइ वानरो सो, तक्कालं जायविरहु व्व ॥ ७८२ ॥ भणइ पिया जो वानर !, कालो जह एइ तं तह गमेसु । मा वंजुला पडणं, सुमरंतो रोयसु इयाणि ॥ ७८३||
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