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श्रीधर्मविधिप्रकरणम् सुहसायरमग्गाणं, तेसिं दिवसेसु अइक्कमंतेसु । के उग्गमु व्व जाया, अपुत्तया दुक्खसंजणणी ॥४॥ अह तत्थ इलानामा, पुरदेवी आसि अइसयावासा । संकप्पियत्थपूरण-पवणा कप्पगुमलय व्व ॥५॥ तीसे सिट्ठी सपिओ, जणप्पवाहे सुणिय विक्खाई । पुत्तुप्पत्तिनिमित्तं, एयं ओयाइयं कुणइ ॥६॥ जइ मज्झ सुओ होही, ता करिस्सामि देवि ! तुह भवणे । जत्तामहूसवमहं, नामं पि तवाभिहाणेण ॥७॥ भवियव्वयावसेणं, संजाओ सेट्ठिणीइ अह गब्भो । पडिपुन्नेसु दिणेसुं , सुयं पसूया य सुमुहुत्ते ॥८॥ तत्तो इलाइ भवणे, कारइ जत्तामहूसवं सिट्ठी । दिवसे य दुवालसमे, देइ इलापुत्त इय नामं ॥९॥ अह सो वुड्डि गच्छइ, निविग्धं पिउगिहम्मि निवसंतो । रमणीयरायचंपय-तरु व्व गिरिकुहरमज्झम्मि ॥१०॥ तेण कलासत्थाई, सव्वाइँ वि अहिगयाइँ लीलाए । थोवदिणेहि वि जाओ, सयलकलापारगो तत्तो ॥११॥ अह तारुन्नं पत्तो, आणंदंतो जणं स सव्वत्थ । कीलइ य जहिच्छाए, सद्धिं दुल्ललियमित्तेहिं ॥१२॥ अन्नदिणे पुरतीरे, नच्चंतिं लंखपुत्तियं एगं । विन्नाणरूवरेहं व, पिक्खए सो इलापुत्तो ॥१३।। तो चिंतइ सो हियए , अहो अहो रूवमसरिसमिमीए । विन्नाणलच्छिलीलाउक्करिसो कोऽवि हु अउव्वो ।।१४।। लावन्नरसनईए, उदग्गसोहग्गधणनिहाणाए । निम्मावणे इमीए , नूणं अवरो विही कोऽवि ॥१५॥ एवं सो झायंतो, मंतरहस्सं व तं नडिं हियए । तग्गुणगणेहिँ बद्ध व्व, चलइ ठाणाउ नो कह वि ॥१६॥
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