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सप्तमं धर्मभेदद्वारम्
जं पुण मयंककरनिम्मलस्स जिणसासणस्स मालिन्नं । संजायं मह कज्जे, तं दूमइ नणु दुसल्लं व ॥६३॥ ता जाव मए कह वि हु , न पवयणमालिन्नमयमवणीयं । ता मह हिययस्स धिई, न होइ जीवंतकाले वि" ॥६४॥ इय चितिउं सुभद्दा, संझासमयम्मि सगिहपडिमाए । काऊण परमपूयं, संथुणए नवनवथुईहिं ॥६५॥ तो गिण्हेइ पइन्नं, जाव न जिणसासणस्स मालिन्नं । अवणीयामिमं ताऽहं, काउस्सग्गं न पारेमि ॥६६॥ जा जिणसासणभत्ता , देवो सो होउ मज्झ पच्चक्खो । अन्नह मए इमं चिय, पडिवन्नं अणसणं इहि ॥६७॥ इय जाव खणं इक्वं, काउस्सग्गेण चिट्ठइ सुभद्दा । ता तत्थ समुज्जोओ, जाओ रविउग्गमाउ व्व ॥६८॥ अह सा पिक्खइ पुरओ, देवं वरहारकुंडलाईहिं । सव्वंगभूसियतणुं , पत्तं मुत्तं व धम्मनिहिं ॥१९॥ स भणइ भद्दे ! जंपसु ,सरिओ कज्जेण जेण तुमएऽहं । तं दट्ठण सुभद्दा, तुट्ठा तं पइ पयंपेइ ॥७०॥ पवयणभत्ता तुमं लहु ,अवणेसु जिणसासणाववायमिमं । पभणइ सुरो सुभद्दे !, इत्थ त्थे कुणसु मा खेयं ॥७१।। नयरीइ दुवाराई, चउरो वि अहं पभायसमयम्मि । ढक्किस्सामि न को वि हु, उग्घाडिस्सइ तुमं मुत्तुं ॥७२॥ गयणत्थो य भणिस्सं, जा का वि महासई इह पुरीए । सा चालणिखित्तजलच्छडाहि उग्घाडउ दुवारे ॥७३॥ उग्घाडिस्सइ ताई, विमुत्तुं न का वि इह अन्ना । इय भणिऊणं तियसो, सहसा अइंसणं पत्तो ।।७४।। ता पारिय उस्सग्गो, निसं सुभद्दा गमेइ संतुट्ठा । ____ 25 उवलद्धवंछियत्थो, को नाम न तोसमुव्वहइ ॥७५॥
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