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कलशपूजायां कथानकम् ॥
मरिऊणं सोमसिरी भयवं सा कत्थ संपयं वसइ । कवणं गई गमिस्सइ ऐवं चिय कहसु नाणेण ॥४८॥ भणियं सोमसिरी सा नियपिउणो तुज्झ पायमूलंमि । चिट्ठइ संपइ सुक्खं भुंजती इच्छियं एसा ॥४९।। पुणरवि सुरनरसुक्खं भुत्तूण कमेण पंचमे जम्मे । पाविहि मुक्खसुक्खं जिणजलपूआणुभावेणं ॥५०॥ सोऊण इमं वयणं कुंभसिरी हरिसनिब्भरसरीरा । दूराओ समुढेउं पणमइ पयपंकयं गुरुणो ॥५१॥ पुणरवि पुच्छइ भयवं कुंभारो संपई वसइ कत्थ । जेण कओ उवयारो मह पुटिव कुंभदाणेण ॥५२॥ भणिया सा मुणिवइणा भद्दे मरिऊण सो समुप्पन्नो । अणुमोयणागुणेणं नरनाहो तुह पिया ऐस ॥५३॥ राया वि य संतुट्ठो एवं सोऊण पुत्वभवचरियं । पणमइ पुणो पुण व्विय धरणियलनिहत्तसीसेण ॥५४॥ जाईसरणं जायं तिन्हं पि हु पुव्वजम्मसंबद्धं । निसुणंताणं ताणं साहिज्जं तं निययचरियं ॥५५॥ भयवं तुम्हेहि इमं जहट्ठियं अम्ह साहियं चरियं । अम्हेहि वि विन्नायं जाईसरणेण नीसेसं ॥५६॥ जम्मंतरावराहं कुंभसिरी दुग्गयाइ नारीए । नमिऊण भावसारं खमाविया कमविलग्गाए ॥५७॥
१. वट्टइ । २. एयं । ३. पाविहइ । ४. घडपयाणेण । ५. एसो । ६. विहित्त । ७. मुर्णिदेणं । ८. जाईसरणेन । ९. पयविलग्गाए ।
★ भणिया सा मुणिवइणा सोमसिरी निययतायपयमूले । इति पाठांतरम् ★★ भणइ य जो कुंभारो स मरिउं कत्थ संपयं वसइ । इति पाठांतरम्
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