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________________ ऐतिहासिक सार-भाग संगमरमर की खान में से, मौजुद्दीन बादशाह की आज्ञा से उत्तम प्रकार के पांच बडे बडे पाषाण खंडों के मंगवाने के प्रबन्ध किया । बहुत कठिनता से वे खंड शत्रुजय पर पहुंचे । इन में से दो खंड मंत्री ने मंदिर के भूगृह में रखवा दिये कि जिससे भविष्य में कभी कोई ऊपर्युक्त दुर्घटना हो जाय तो इन खंडों से नई प्रतिमा बनवाकर पुनः शीघ्र स्थापित कर दी जायँ । ___ संवत् १२९८ में वस्तुपाल महामात्य का स्वर्गवास हो गया । सत्पुरुषों की जो शंका होती है, वह प्रायः मिथ्या नहीं होती । विधि की वक्रता के प्रभाव से, मंत्रीश्वर के मृत्यु अनन्तर थोडे ही वर्षों बाद मुसलमानों ने भगवान् आदिनाथ की उस भव्य मूर्ति का कंठ छेद कर दिया । संवत् १३७१ में साधु समरासाहने फिर नई प्रतिमा बनवाकर उस जगह स्थापित की और वृद्ध तपागच्छ के श्रीरत्नाकरसूरि, जिनसे इस गच्छ का दूसरा नाम रत्नाकरगच्छ प्रसिद्ध हुआ, ने उसकी प्रतिष्ठा की । इस बात का जिक्र अन्य प्रशस्ति में भी किया हुआ है । यथा - वर्षे विक्रमतः कुसप्तदहनैकस्मिन् (१३७१) युगादिप्रभुं श्रीशजयमूलनायकमतिप्रौढप्रतिष्ठोत्सवम् । साधुः श्रीसमराभिधस्त्रिभुवनीमान्यो वदान्यः क्षितौ श्रीरत्नाकरसूरिभिर्गणधरैर्यैः स्थापयामासिवान् ॥ ___* टिप्पणी में लिखा है कि-मोजुद्दीन बादशाह का मंत्री पुन्नड करके था, जो श्रावक होकर वस्तुपाल का प्रिय मित्र था । उसने ये पाषाण खंड भिजवाये थे । इन खंडों में से एक खंड आदिनाथ भगवान की मूर्ति के लिये, दूसरा पुंडरीक गणधर की, तीसरा कपर्दी यक्ष की, चौथा चक्रेश्वरी देवी की और पांचवा तेजलपुर प्रासाद लिये पार्श्वनाथ तीर्थंकर की प्रतिमा के लिये मंगवाया था । १. टिप्पणी में, इस दुर्घटना का संवत् १३६८ लिखा है । २. समरासाह का विस्तृत वृत्तान्त के लिये मेरी 'ऐतिहासिक-प्रबन्धो' नामक गुजराती पुस्तक देखो । - यह प्रशस्तिपद्य, स्तम्भतीर्थ (खंभात) के कोटीध्वज साधु श्रीशाणराज के संवत् Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002553
Book TitleShatrunjayatirthoddharprabandha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherShrutgyan Prasarak Sabha
Publication Year2009
Total Pages114
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Tirth
File Size6 MB
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