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उपोद्घात
शत्रुजय पर्वत का परिचय जगत के प्रायः सभी प्राचीन धर्मो में किसी न किसी स्थान विशेष को पूज्य, प्रतिष्ठित और पवित्र माने जाने के उदाहरण सब के दृष्टिगोचर हो रहे हैं। क्या मूर्तिपूजा मानने वाले और क्या उस का निषेध करने वाले; क्या ईश्वरवादी और क्या अनीश्वरवादी; सभी इस बात में एक से दिखाई देते हैं। हिन्दु हिमालयादि तीर्थों को, मुसलमान मक्का तथा मदीना को, क्रिश्चियन जेरुसलम को और बौद्ध गया और बोधिवृक्ष वगैरह स्थानों को हजारों वर्षों से पूजनीय और पवित्र मानते आ रहे हैं। इन धर्मों के सभी श्रद्धालु मनुष्य, जीन्दगी में एक बार अपने अपने इन पावन स्थानों में जाया जाय तो स्वजन्म को सफल हुआ मानने की मानता रखते हैं। जैनधर्म में भी ऐसे कितने ही स्थल पूजनीय और स्पर्शनीय माने गये हैं। शत्रुजय, गिरनार, आबू, तारंगगिरि और समेतशिखर आदि स्थानों की इन्हीं में गिनती है। इन में भी शत्रुजय नामक पर्वत सब से अधिक श्रेष्ठ, सब से अधिक पवित्र और सब से अधिक पूज्य गिना जाता है।
यह पर्वत, बम्बई ईलाखे के काठियावाड प्रदेश के गोहेलवाड प्रांत में, पालीताणा नामक एक छोटीसी देशी रियासत की राजधानी के पास है। इस का स्थान, भूगोल में, २१ अंश, ३१ कला, १० विकला उत्तर अक्षांश और ७१ अंश, ५३ कला, २० विकला पूर्व देशान्तर, हैं। पालीताणा एक कस्बा है जिस में सन् १८९१ * की मनुष्य गणना के * सन् १९११ की मनुष्य-गणना के संख्याक न मिलने के कारण यहाँ पर १८९१
के सन के दिये हैं।
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