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आधुनिक वृत्तान्त
२३ का बहुत ही भव्य और साक्षात् देवविमान के जैसा मंदिर तैयार करवाया । इस मंदिर की चारों ओर सेठ हठीभाई, दिवान अमरचन्द दमणी, मामा प्रतापमल्ल आदि प्रसिद्ध धनिकों ने अपने अपने मंदिर बनवाये । सब मंदिरों के इर्द गीर्द पत्थर का मजबूत किला करवाया । मंदिरों का कार्य पूरा होने आया था कि, इतने में सेठजी का देहान्त हो गया । इससे उनके सुपुत्र सेठ खीमचन्द ने, बडा भारी संघ निकाल कर, शत्रुजय की यात्रा के साथ इस रमणीय टोंक की संवत् १८९३ में प्रतिष्ठा करवाई । यह संघ बहुत ही बडा था । इसमें ५२ गांवों के ओर संघ आकर मिले थे और उन सबका संघपतित्व खीमचंद सेठ को प्राप्त हुआ था ! कहा जाता है कि इस टोंक के बनाने में एक करोड से भी अधिक खर्च हुआ था ! इसमें कोई १६ तो बडे बडे मंदिर हैं और सवा सौ के करीब देहरियां हैं । जहां ७०-८० वर्ष पहले भयंकर गर्त अपनी भीषणता के कारण यात्रियों के दिल में भय पैदा करता था, वहां पर आज देवविमान जैसे सुंदर मंदिरों को देखकर दर्शकों के हर्ष का पार भी नहीं रहता । सचमुच ही संसार में समर्थ मनुष्य क्या नहीं कर दिखाता ?
९ आदिश्वर भगवान की टोंक । शत्रुजयगिरि के दूसरे शिखर पर आदीश्वर भगवान की टोंक बनी हुई है । यह टोंक सबसे बडी है । इस अकेली ने ही पर्वत का सारा दूसरा शिखर रोक रखा है । इस तीर्थ की जो इतनी महिमा है, वह इसी कारण है । तीर्थपति आदिनाथ भगवान का ऐतिहासिक और दर्शनीय मंदिर इसीके बीच में है । बडे कोट के दरवाजे में प्रवेश करते ही एक सीधा राजमार्ग जैसा फर्शबन्ध रास्ता दृष्टिगोचर होता है, जिसकी दोनों ओर पंक्तिबद्ध सेंकडो मंदिर अपनी विशालता, भव्यता और उच्चता के कारण दर्शकों के दिल एकदम अपनी ओर आकृष्ट
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