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आधुनिक वृत्तान्त
१५ कि हिंगलाज की पूजा करने से पर्वत के चढने में कष्ट नहीं होता है ! यहां से चढाई बिलकुल खडी और ठाँठी होने के कारण कुछ कठिन है ।"
"आगे सबसे अन्तिम टेकरी पर हनुमान की देहरी मिलती है । इसमें सिन्दूरलिप्त वानराकार हनुमान की मूर्ति बिराजमान् है । इसी प्रकार की गणेश, भवानी आदि हिन्दु देव-देवियों की मूर्तियाँ और भी कई जगह स्थापित हैं । इन की स्थापना पर्वत के ब्राह्मण पुजारियों या सिपाहीयों ने की होगी ।" ।
"यहाँ से आगे दो रास्ते निकले हैं । (एक सीधा बडी टोंक को जाता है और दूसरा सब टोंको में होकर वहां जाता है ।) दाहनी ओर के रास्ते से पहले कोट के भीतर जाना होता है । यहाँ एक झाड के नीचे एक मुसलमान पीर की कब्र बनी हुई है । इसके विषय में एक दन्तकथा प्रचलित है कि- "अंगारशा नामका एक करामाती फकीर था । वह जब जीता था तब पाँच भूतों को अपने काबू में रख सकता था । उसने एक बार गर्वित होकर आदिनाथ भगवान की प्रतिमा पर कुछ उत्पात मचाया, इससे किसीने उसे मार डाला । मर कर वह पिशाच हुआ । और मंदिर के पूजारियों को तरह तरहकी तकलीफें देने लगा और आखिर इस शर्त पर शान्त हुआ कि इस स्थान पर मेरी हड्डियाँ गडाइ जायँ ।" लाचार होकर लोगों ने वहां उसकी कब्र बना दी । कर्नल टॉड साहब को इस प्रवाद पर विश्वास नहीं है । वे कहते हैं कि हिन्दु लोग इस प्रकार की दन्तकथायें गढ लेने में बड़े ही सिद्धहस्त हैं । यदि कभी किसी मौके पर उनके धर्म का अपमान हो और वे अपने प्रतिपक्षी से टक्कर न ले सकें तो वे उस अपमान को दूर करने के लिये इसी हिकमत को काम में लाया करते हैं। इस विषय में श्रावक लोगों में जो प्रवाद चला आ रहा है, वह
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