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________________ उपोद्घात बदले में सुन्ना भरकर लाये थे। जावड को इनकी खबर सुनकर बहुत खुशी हुई। सब जहाज वहीं पर खाली कर लिये गये। जैनसंघ के आचार्य श्रीवज्रस्वामी भी इस समय मधुमती में पधारे। उनकी अध्यक्षता में जावड ने वहाँ से बडा भारी संघ निकाला और उस भगवत्प्रतिमा को लेकर शत्रुजय के पास पहुँचा। आचार्य श्रीवज्रस्वामी के साथ जावड सारे ही संघ समेत गिरिराज पर चढने लगा। असुरों ने रास्ते में कितने ही उपद्रव और विघ्न किये जिनका शान्तिकर्म द्वारा श्रीवज्रस्वामी ने निवारण किया। ऊपर जाकर देखा तो सर्वत्र हड्डी वगैरह अपवित्र पदार्थ पड़े हुए थे। मन्दिरों पर बेसुमार घास ऊगी हुई थी। शिखर आदि टूट फूट गये थे। तीर्थ की यह अधमावस्था देख कर संघपति और संघ बडा खिन्न हुआ। जावड ने पहले सब जगह साफ करवाई। शत्रुजयी नदी के जल से सर्वत्र प्रक्षालन करवाया। मन्दिरों का स्मारक काम बनवा कर तक्षशिला से लाई हुई प्रतिमा की स्थापना की। उस कार्य में असुरों ने बहुत कुछ विघ्न डाले परंतु श्रीवज्रस्वामी ने अपने दैवी सामर्थ्य से उन सब का निवारण किया। प्रतिष्ठादिक कार्यों में जावड़ ने अगणित धन खर्च किया। मन्दिर के शिखर पर ध्वजारोपण करने के लिये जावड स्वयं अपनी स्त्री सहित शिखर पर चढा। ध्वजारोपण किये बाद सर्व कार्यों की पूर्णाहूति हुई समझ कर और अपने हाथों से इस महान् तीर्थ का उद्धार हुआ देख कर दोनों (दम्पति) के हर्ष का पार नहीं रहा। वे आनन्दावेश में आकर वहीं पर नाचने लगे जिससे शिखर पर से नीचे गिर पडे। मर्मांतक आघात लगने के कारण, तत्काल शरीर त्याग कर उनका उन्नत आत्मा स्वर्ग की ओर प्रस्थित हो गया। जावड के पुत्र जाजनाग और संघ ने इस विपत्ति का बडा दु:ख मनाया। परन्तु आचार्य महाराज के उपदेश से सब शान्तचित्त हुए। जावड ने इस तीर्थ की रक्षा के लिये और भी अनेक प्रबन्ध करने चाहे थे परंतु भवितव्यता के आगे वे विफल गये। इस कारण आज भी जो कार्य Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002553
Book TitleShatrunjayatirthoddharprabandha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherShrutgyan Prasarak Sabha
Publication Year2009
Total Pages114
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Tirth
File Size6 MB
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