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________________ आचारांगभाष्यम् से तृप्ति या अतृप्ति २।१३६ परिणाम २।६९,८५; ४।१८१६ सबको न होने का कारण पृ. २२-२३, ___ रोग २१७५ क्रोध, देखें-कषाय ३२६ कामकामी क्षेत्रज्ञ ३।१६-१७ से अनुसंचरण के हेतु का ज्ञान ११६ की मन:स्थिति का चित्रण २११२४ । गृहत्यागी चिन्तन क्रम में परिवर्तन १७ ___ वैर-वृद्धि २।१३५ एवं गृहवासी के लक्षण ५५४३ परिज्ञात कर्मा बनने का प्रयत्न शर के क्रिया-कलाप २०१३४ का गृहस्थ जैसा आचरण १९८; ज्ञानयोग की फलश्रुति ३१ कामचिकित्सा १४३; ६८६ ज्ञानवान् ३४ के उपाय ५७८-८४ पुन: गहवासी बनने के कारण २।३० ज्ञानी की जीवन-चर्या के सात सत्र ३१३८ ध्यान एवं तपस्या द्वारा २११४७ चारित्र धर्म पालने में असमर्थ ६।३० तप में हिंसा का निषेध २११४०-१४४, मुनिधर्म से च्युत ६।३३ उपकरण अवमौदर्य तथा कायक्लेश १४७ में न गार्हस्थ्य न अनगारता २।३४ ८५५,७३,७९,९५ कामभोग पुनः गृहवासी २।२९; ४।४५, ६।३१, एकत्व अनुप्रेक्षा ८९९ और अचेल मुनि ६।६४ का परिणाम २१७५-७९ ८४-८५ के अतिक्रमण का उपाय-विपश्यना चिकित्सा परिग्रही पुरुष २०५९ २।१२५ काम की, देखें-काम-चिकित्सा स्वाद अवमोदर्य तथा कायक्लेश तृप्ति देने में असमर्थ २।९७-९९ निरवद्य उपाय से २११४७ ८।१०३ धर्म के बाहर ५।१२ हिंसानुबंधी, देखें-हिंसानुबंधी तंजसकायिक जीव, देखें-अग्निकायिक में चित्त की स्थापना और परिणाम चिकित्सा जीव २१३२-३४ जन्म त्रसकायिक जीव से विमुक्त-पारगामी २१३४ और जरा को देखने का निर्देश ३।२६ और कुछ अनगार १११२७ कर्म-समारम्भ का हेतु १।१० काममुक्ति का उपाय संसार ११११९ काल की विभिन्न अवस्थाएं ६।२५ का ज्ञान १११२० अनुपरिवर्तनानुप्रेक्षा २।१२६ -मरण का अतिक्रमण ५।१२२ की वेदना का बोध ११३७-१३९ अशुचि अनुप्रेक्षा २।१२९-१३० पराक्रम २०१२८ जलकायिक जीव के प्रकार ११११८ विचार विचयात्मक आलम्बन २२१३२ और अन्य दार्शनिक ११५५ लक्षण १२१२३ विपाक दर्शन २।१३१ का अस्तित्व ११३८,५५ पृथक्-पृथक् शरीर में १३१२५ शरीर के प्रति विरक्ति २।१२९ की हिंसा २४१,४२,४५,५० प्रसकायिक जीव की हिंसा १२१२४,१२८, संधि को देखना २२१२७ हिंसा-विवेक श६२-६५ १३१,१३६,१४१ कामासक्त हिंसा के परिणाम ११४६,४८ का परिणाम १११३२,१३४ के शरीर की निर्बलता एवं व्यथा ६.१७ हिंसा के हेतु ११४४,४९ प्रयोजन १११३०,१३५,१४० जीवन की अनित्यता से अनजान ५१५ के प्रति व्यवहार २३८ विवेक १११४२-१४४ कामासक्ति शस्त्र ११५६-५७ से विरति १२१२१,१२२ की ओर मानसिक दौड़ २११३३ जलारम्भ और अन्य दार्शनिक त्रिविद्य के प्रतिकार का उपाय ४/४३ ११५८-६१ का स्वरूप ३१२८ रोग का मूल ६।१६ जीवत्व संसिद्धि ११३९ पुरुष का कर्तव्य ४१३९ क्रिया, देखें-आश्रव, प्रवृत्ति 'वेदना-बोध ११५१-५३ दंड, देखें-हिंसा का दूसरा नाम आश्रब ११६ वैज्ञानिक मत ११५५ का प्रयोग २।४२ परिणाम ११६ जातिस्मृति के प्रयोजन २१४२-४५ के प्रकार श६ और प्रत्यक्षवादी पृ. १८ समारम्भ का निषेध २०४६ क्रियावाद ९।१।१६ का मुख्य फल १५ वर्शन की परीक्षा क्रियावादी ११५ पृ. २५ के कारण पृ. २१ और अन्य दर्शन ॥११३ विचय सूत्र १११-४ एकांगीवादों का निरूपण ८५-८ का अर्थ २०६९ शक्यता के तीन हेतु ११३,पृ. १९-२० तीर्थकर के सिद्धांत ५।११६ कर-कर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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