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________________ ४१६ आचारांगभाष्यम् भाष्यम् १०-ग्रथितः-अवबद्धः।' मिथःकथा - प्रथित का अर्थ है-अवबद्ध । मिथःकथा का अर्थ हैकामकथा, परस्परं जायमाना भक्तादीनां कथा वा। कामकथा अथवा आपस में होने वाली आहार आदि की कथा । समय समयः-संकेतः, सांकेतिकी कथेति यावत् । असरणं- का अर्थ है- संकेत । इसका तात्पर्य है सांकेतिक कथा। असरण का अस्मरणम् । अर्थ है-अस्मरण । । अस्यानुसारी उपदेश: इसका संवादी उपदेश है'णारति सहते वीरे, वीरे णो सहते रति ।४ 'वीर पुरुष संयम में उत्पन्न अरति और असंयम में उत्पन्न रति को सहन नहीं करता।' 'अरइरइसहे फरुसियं णो वेदेति । ५ 'जो अरति और रति को सहन करता है, उनसे विचलित नहीं होता, वह कष्ट का वेदन नहीं करता।' 'का अरई ? के आणंदे ? एत्थंपि अग्गहे चरे।" 'साधक के लिए क्या अरति और क्या आनन्द ? वह अरति और आनन्द के विकल्प को ग्रहण न करे।' ११. अविसाहिए दुवे वासे, सीतोदं अभोच्चा णिक्खंते । एगत्तगए पिहियच्चे, से अहिण्णायदंसणे संते ॥ सं०-अपि साधिको द्वौ मासो, शीतोदं अभुक्त्वा निष्क्रान्तः । एकत्वगतः पिहितार्चः, स अभिज्ञातदर्शनः शान्तः । भगवान् माता-पिता के स्वर्गवास के पश्चात् दो वर्ष से कुछ अधिक समय तक गृहवास में रहे। उस समय उन्होंने सचित्त भोजन और जल का सेवन नहीं किया। वे परिवार के साथ रहते हुए भी अन्तःकरण में अकेले रहे। उनका शरीर, वाणी, मन और इन्द्रिय-सभी सुरक्षित थे । वे सत्य का दर्शन और शान्ति का अनुभव कर रहे थे। इस गृहवासी साधना के बाद उन्होंने अभिनिष्क्रमण किया। भाष्यम् ११-अभुक्त्वा--अपीत्वा। बंगभाषायां अभोच्चा (सं० अभुक्त्वा) का अर्थ है-बिना पीए । बंग भाषा पानार्थेऽपि भोजनार्थधातोः प्रयोगो दृश्यते । स भगवान् में पीने के अर्थ में भी भोजन अर्थ वाली धातु का प्रयोग होता है । अभिज्ञातदर्शन:-क्षायिकसम्यग्दर्शन आसीत् । स भगवान् महावीर क्षायिक सम्यग्दर्शन के धारक थे। वे समूह के मध्य १. भगवान् प्रतिकूल और अनुकूल दोनों प्रकार के परीषहों ५. वही, ३७। को सहन करते थे। एक वीणा-बादक वीणा बजा रहा था। ६. वही, ३।६१ । भगवान् परिव्रजन करते हुए वहां आ पहुंचे। वीणा-वादक ७. (क) आचारांग चूणि, पृष्ठ ३०४-३०५ । ने भगवान् को देखकर कहा-'देवार्य ! कुछ ठहरो और (ख) भगवान् के माता-पिता का स्वर्गवास हुआ, तब वे मेरा वीणा-वादन सुनो।' भगवान् ने उसका अनुरोध अट्ठाइस वर्ष के थे। भगवान् ने श्रमण होने की इच्छा स्वीकार नहीं किया। वे कुछ उत्तर दिए बिना ही चले प्रकट की। उस समय नन्दीवर्द्धन आदि पारिवारिक गये। साधक के लिए यह एक अनुकूल कष्ट है लोगों ने भगवान से प्रार्थना की-'कुमार! इस __ से तंति चोएन्तो अच्छति, भगवं च हिंडमाणो आगतो, समय ऐसी बात कहकर, जले पर नमक मत डालो। सो तं आगतं पेच्छेत्ता भणइ-भगवं देवज्जगा! इमं ता इधर माता-पिता का वियोग और उधर तुम घर सुणेहि, अमुगं कलं वा पेच्छाहि, तत्थवि मोणेणं चैव छोड़कर श्रमण होना चाहते हो, यह उचित नहीं गच्छति ।' (आचारांग चूणि, पृष्ठ ३०३) है।' भगवान् ने इस बात पर ध्यान दिया। उन्होंने २. आचारांग चूणि पृष्ठ ३०३ : 'मिहोकहासमयोत्ति जे केवि इत्थिकहाति कहेंति, भत्तकहा देसकहा रायकहा दोन्नि जणा सोचा- 'यदि मैं इस समय दीक्षित होऊंगा, तो बहू वा, तहिं गच्छति, जातिवत्तति अंजू, अहवा रीयंतं बहुत सारे लोग शोकाकुल होकर विक्षिप्त हो अच्छतं वा पुच्छइ-तुम किंजाइत्थिया संदरी ? कि जाएंगे। कुछ लोग प्राण त्याग देंगे । यह ठीक नहीं बंभणी खत्तियाणी वतिस्सिी सुद्धी व ?एवमादी मिहुकहा।' होगा।' भगवान् ने बातचीत को मोड़ देते हुए ३. वही, पृष्ठ ३०३ : 'असरणं अचितणं अणाढायमाणंति कहा-'आप बतलाएं, मैं कितने समय तक यहां एगट्ठा, अहवा सरणं गिह, णऽस्स तं सरणं विज्जतीति रहूं ?' नन्दीवर्धन ने कहा-'महाराज और असरणगो, ण य सरणंति अतिक्कताणि पुव्यरयाणीति ।' महारानी की मृत्यु का शोक दो वर्ष तक मनाया ४. आयारो, २११६०॥ जाएगा। इसलिए दो वर्ष तक तुम घर में रहो।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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