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________________ मूल सूत्र तथा भाष्यगत विषय-विवरण ४३-५६. उपकरण-विमोक्ष ४३. वस्त्रों की अपेक्षा से चार प्रकार के मुनि ४४. यथा-एषणीय वस्त्रों की याचना का निर्देश ४५. यथा-परिगृहीत वस्त्रों के विषय में निर्देश ४६. नो धोएज्जा नो रएज्जा....... ४७. वस्त्रों को न छिपाना ४८. अवमचेल कौन ? ४९. वस्त्रधारी भिक्षु की सामग्री ५०. वस्त्र-विषयक प्राचीन परंपरा ५१. सान्तरोत्तर की प्राचीन परंपरा • वृत्ति की व्याख्या ५२. एक शाटक कब ? कैसे? ५३. अचेल का तात्पर्य ५४-५५. वस्त्र-लाघव और उससे होने वाला तप ५६. वस्त्र विषयक समता का निर्देश ५७-६१. शरीर-विमोक्ष ५७. स्त्री-परीषह से स्पृष्ट मुनि का कर्तव्य ५८. स्त्री-परीषह सहने में अशक्त मुनि को विहित __ मार्ग से प्राण-त्याग करने का निर्देश • फांसी से प्राण-त्याग की प्राचीन परंपरा ५९. असहनीय स्थिति में फांसी लगा कर मरना अप्रतिषिद्ध ६०. कारणिक मृत्यु भी अन्तक्रिया में साधक ६१. कालमोह के अपनयन के लिए स्वीकृत मृत्यु सुखकर...... ६२-७४. उपकरण-विमोक्ष ६२. दो वस्त्र, एक पात्र की परंपरा ६३-६४. यथा-एषणीय तथा यथा-परिगृहीत वस्त्र की याचना ६५. न धोए, न रंगे ६६. वस्त्र न छिपाए ६७. अवमचेल कौन ? ६८. वस्त्रधारी भिक्षु की सामग्री ६९. वस्त्र-विसर्जन कब ? कैसे ? ७०. एक शाटक ७१. अचेल का तात्पर्य ७२-७३. वस्त्र-लाघव तथा उससे होने वाला तप ७४. वस्त्र-विषयक समता का निर्देश ७५. ग्लान द्वारा भक्त-परिहार ० भिक्षु असमर्थ होने पर भी गृहस्थ द्वारा लाया भोजन न ले ७६-८४. सेवा का कम्प ७६. परस्पर सेवा करने की प्राचीन परंपरा ७७. सेवा के निमित्त भिक्षु के प्रतिज्ञा-विकल्प ७८. वस्त्र का क्रमिक विसर्जन और अभिग्रह ७९. अभिग्रहधारी मुनि के तप का निर्देश ८०. समता की साधना का निर्देश ५१. वस्त्र-विषयक सामाचारी के पालन का निर्देश तथा उसकी फलश्रुति ८२-८४. वह मृत्यु अन्तक्रियाकारक और कल्याणकारी ८५-९६. उपकरण-विमोक्ष ८५. एक वस्त्र, एक पात्र ८६-८७. यथा-एषणीय और यथा-परिगृहीत की याचना ८८. न धोना, न रंगना ८९. वस्त्र को न छिपाए ९०. अवमचेलिक कौन ? ९१. वस्त्रधारी भिक्षु की सामग्री ९२. वस्त्र-विसर्जन कब ? कैसे? ९३. वस्त्र-रहित होने का निर्देश ९४-९५. वस्त्र-रहित का लाघव और तप - ९६. समता का पालन ९७-१००. एकत्व भावना ९७. 'मैं अकेला हूं', 'मेरा कोई नहीं'--एकत्व का चिन्तन ९८. एकत्व के चिन्तन से लाघव की उपलब्धि ९९-१००. एकत्वानुप्रेक्षा की तपोमय गरिमा और उसके यथार्थ पालन का निर्देश १०१-१०४. अनास्वाद-लाघव १०१. अनास्वाद वृत्ति का निरूपण १०२. स्वाद-विसर्जन १०३-१०४. अनास्वादवृत्ति से स्वाद-अवमौदर्य तप तथा समत्व लाभ १०५. संलेखना संलेखना के चार अंग और उनका विशद निरूपण १०६-११०. इंगिनीमरण अनशन १०६. इंगिनीमरण का वाचक इत्वरिक • इत्वरिक शब्द का विमर्श । इंगिनीमरण की प्रक्रिया १०७. इंगिनीमरण अनशन स्वीकार करने वाले भिक्षु की विशिष्ट अवस्थाएं १०८. इंगिनीमरण काल-मृत्यु का उपक्रम १०९, अन्तःक्रिया का बोधक .११०. प्राण-विमोह की साधना १११-११५. उपकरण-विमोक्ष १११. अचेल व्यक्ति का चिन्तन और कटिबंध धारण करने की उत्सुकता ,... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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