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________________ आचारांगभाष्यम् बाधकामावाच्च । 'सर्वज्ञता का कोई बाधक प्रमाण नहीं है। अतः बाधक प्रमाण के अभाव में सर्वज्ञता की सिद्धि होती है।' कालासवेशीयपुत्रस्य भगवतो महावीरस्य स्थविरैः कालासवेशीयपुत्र का भगवान् महावीर के स्थविरों के साथ सह यः संवादः संवृत्तः तेन एष निष्कर्षः सम्मुखीभवति, जो संवाद हुमा, उससे यह निष्कर्ष सामने आता है कि भगवान् महावीर भगवतो महावीरस्य साधनापद्धतेः षड् मूलतत्त्वानि की साधना पद्धति के छह मूल तत्त्व थेआसन्१. सामायिकम् । ४. संवरः। १. सामायिक। ४. संवर। २. प्रत्याख्यानम् । ५. विवेकः । २. प्रत्याख्यान । ५. विवेक । ३. संयमः। ६. व्युत्सर्गः । ३. संयम । ६. व्युत्सर्ग। अस्मिन्नागमे सामायिकादीनि षडपि तत्त्वानि सन्ति प्रस्तुत आगम में सामायिक आदि छहों तत्त्वों का वर्णन प्राप्त संवणितानि, तानि यथास्थानमन्वेषणीयानि । अस्मिन् है। उनका यथास्थान अन्वेषण किया जा सकता है। जैसे सूत्रकृतांग में पंचमहाव्रतानां स्पष्ट व्यवस्था नास्ति, यथा सूत्रकृतांगे पांच महाव्रतों की स्पष्ट व्यवस्था है, वैसे प्रस्तुत आगम में नहीं है। इस दृश्यते। अस्मिन् विषये इति वक्तव्यमावश्यकमस्ति यद् विषय में यह बताना आवश्यक है कि भगवान् महावीर के प्रवचन में भगवतो महावीरस्य प्रवचने पञ्च महाव्रतानि पांच महाव्रत सामायिक के ही अंग हैं और वे सामायिक के ही विस्तार सामायिकस्याङ्गभूतानि विस्तारभूतानि च सन्ति। हैं । आत्मा का निरूपण सामायिक से संबद्ध है ही। भगवती सूत्र में आत्मनो निरूपणं सामायिकेन संबद्धमेव, यथा भगवत्यां सामायिक के साथ आत्मा का एकत्व बताया गया है। समयसार ग्रन्थ सामायिकेन आत्मन एकत्वं प्रदर्शितमस्ति। समयसारेऽपि में भी ऐसा ही देखा जाता है। एवमेव दृश्यते। अस्मिन् पुनर्जन्मनः कारणानि' अमरत्वहेतुनि च आचारांग में पुनर्जन्म के कारण तथा अमरत्व (जन्म-मरण सन्ति वणितानि। अस्मिन् अध्यात्म सम्यक् से मुक्ति) के हेतु भी प्रतिपादित हैं। इसमें अध्यात्म की भावना परिभावितमस्ति । समता अशस्त्रे एव भवति, शस्त्र का सम्यक् निरूपण हुआ है। समत्व अशस्त्र में ही होता है, शसत्र में न सा भवितुमर्हति, तत्र वैषम्यमेव । इत्थमत्यन्तं वह सम्भव नहीं है । उसमें विषमता ही होती है। इन सभी दृष्टियों से मननीयमस्ति अध्ययनमिदम् । यह अध्ययन अत्यंत मननीय है। १. प्रमाणमीमांसा, १११११६,१७। २. अंगसुत्ताणि २, भगवई ११४२३-४२८ । ३. सामायिकम्-३१३० । प्रत्याख्यानम्-११११, ३१२८,४६ । संयमः--३।४। संवरः-३८६। विवेकः-५१७३७४ । व्युत्सर्ग:-८८ गाथा ५, गाथा २१ । एते संकेता उदाहरणरूपेण प्रदर्शिताः। वस्तुतः . प्रस्तुतागमः एषु षट्सु तत्त्वेषु कृतो भवति । ४. अंगसुत्ताणि १, सूयगडो २१११५९ । ५. अंगसुत्ताणि २, भगवई, १।४२६...""आया णे अज्जो! सामाइए। ६. समयसार, गाथा २७७ : आदा खु मजा णाणं आदा मे वंसणं चरित्तं च । आवा पच्चक्खाणं आवा मे संवरो जोगो॥ ७. आयारो, ३।१४। ८. वही, ३.१५,३६,४५ । ९. वही, ३३५४,५५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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