SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४ ढूंढ़कपनेका त्याग किया, उसी वर्ष श्री आत्मारामजी मने स्थानकवासी दीक्षा अंगीकार की। आपने जहाँ प्रकट रूपसे सर्व प्रथम मूर्तिपूजा-मंडनरूप सत्योपदेश प्रवाहित किया, वहीं गुजरावालामें आपके अनुगामी श्री आत्मारामजी म. ने अंतिम सांस ली और जिस दिन आप स्वर्गवासी हुए उसी चैत्र शुक्ल एकमको श्री आत्मारामजी म.सा. का जन्म हुआ था। " आपके मूर्तिपूजा मंडनके बोये बीजको श्री आत्मारामजी म. सा. ने तन-मन- आत्मा -- सर्वस्व समर्पित करके सत्योपदेश रूप वारिराशिसे अभिसिंचित करके अंकुरित किया और विकस्वर भी आपके पू. मूलचंदजी म. आदि अन्य शिष्यवृंदभी था, लेकिन पूर्वदर्शित अनेक प्रकारसे आपसे सादृश रखनेवाले आपके ही चरणचिह्नोंका अनुपमेय अनुसरण करनेवाले श्री आत्मारामजी म.का. सानी कोई नहीं था । दीक्षानन्तर हृदयस्पर्शी सिख देते हुए श्री आनंदविजयजी महाराजजी की प्रखर विद्वत्ता और अद्वितीय योग्यता पर गौरवान्वित बनते हुए उनको प्राचीन जैनधर्मके वैभवको प्रमाणित करनेवाली प्रतिभा सम्पन्न गिरासे उन्नत जिनमंदिरोंकी और उनके पूजकोंकी सुध लेनेके लिए प्रेरित किया। आपभी गुरु महाराजके हार्दिक आशिर्वादसे उल्लसित बनकर घने बादलोंसे घिरे जैनधर्मको उन बादलों से मुक्त प्रकाशित उज्ज्वलता प्राप्त करवाने हेतु उन घने जलदको क्षत-विक्षत करनेके सपने संजोने लगे। ४५ " 7 संयम वर्या धर्मप्रचार- शास्त्रार्थ हेतु विचरण--- आपका अहमदाबादका प्रथम चातुर्मास, ऐतिहासिक एवं यादगार रहा। विशेषकर इस चातुर्मासमें आयोजित श्री शांतिसागरजीके साथ उनके एकान्त पक्ष (इसकालमें सच्चे साधु और श्रावक धर्मका पालन नहीं किया जा सकता; इसलिए न तो कोई सच्चा साधु है न श्रावक) का प्रलाप बंद करवाने हेतु शास्त्रार्थमें विजयश्री वरके आपने उनके उपदेशदावानलसे संतप्त जैन समाजको मानो पुष्करावर्तके मेघ-सी अपूर्व शांति प्रदान कर अपने कीर्तिकीरिटमें एक हीरेकी वृद्धि की । - चातुर्मास पश्चात् सिद्धाचल गिरनारादि तीथोंकी यात्रा करते हुए चातुर्मास हेतु भावनगर पधारें। इस चातुर्मासमें वहाँ के राजा साहबके निवास स्थान पर उनके ही आर्य समाजी गुरु श्री आत्मानंदजीके साथ 'सर्व खल्विदं ब्रह्म पर आधारित वेदान्त चर्चा 'ब्रह्म सत्यं जगन्मिध्या में समन्वयात्मक, निश्चय और व्यवहार नयाश्रित समाधान करके सबको सानंदाश्चर्य और संतुष्टि प्रदान की। ४७ चातुर्मासोपरान्त पालीताना पंचतीर्थ एवं गिरनारादिकी तीर्थयात्रा श्री संघके साथ करके, पंजाबकी धरती पर नवपल्लवित होते हुए पौधेकी सुध लेनेके लिए आप पंजाबकी ओर मुड़े रास्तेमें तारंगाजी आबू - पंचतीर्थ की यात्रा करते हुए पाली पधारें। यहाँ चातुर्मासके लिए जोधपुर श्री संघकी विनती होने पर चातुर्मास जोधपुर किया। व्याख्यान वाणीकी बागडोरके ईशारे उन्मार्गगामी संघको सन्मार्गगामी बनाने का श्रेय प्राप्त करते हुए जैनधर्मकी डाँवाडोल सोचनीय परिस्थितिको स्थिरता प्राप्त करवायी। " तदनन्तर आप दिल्ही होते हुए अंबाला पधारें। ४८ यहाँ आपके शास्त्रविहित साधुवेशके दर्शनका यह अवसर अत्यंत अनुमोदनीय था। इस भावानुप्रणित द्रव्य साधुतासे सभी अत्यधिक प्रभावित हुए। भक्तोंने अनुभव किया जैसे 'उनके Jain Education International 62 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy