SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट-४ पादटिप्पण पर्व-प्रथम : जैनधर्म एवं भ.महावीरकी परम्परामें श्री आत्मानंदजीम.का स्थान मंगलाचरण श्लोक - 'श्री भगवती सूत्र' . श्री अभयदेव सूरि म. कृत टीका १. लब्धि प्रश्न • संपादक श्री वारिषेण सूरि म.सा.पृ ११. २. 'शब्द चिंतामणी' - संपादक श्री सवाइलाल वि. छोटालाल वोरा पृ.१३२९ । ३. अभिधान चिंतामणी . ले. श्री हेमचन्द्राचार्यजी म. श्लोक २४, २५. ४. जैनधर्मनी रूपरेखा - ले. श्री राजयश सूरिजी म. पृ. ४२ ५. विकालिक आत्म विज्ञान - ले. पनालाल गांधी पृ. २१२-२१३ ६. 'महादेव वीतराग स्तोत्र' . ले. श्री हेमचंद्राचार्यजीम. श्लोक-३९ ७. 'महादेव वीतराग स्तोत्र' - ले. श्री हेमचंद्राचार्यजीम. श्लोक-४०से ४३ ८. 'तत्व निर्णय प्रासाद' - श्रीमद्विजयानंद सूरिम. पृ. ७६ ९. तत्त्वार्थाधिगम सूत्र . श्री उमास्वातिजी म. अध्याय-५ सूत्र-२९ १०. जैनधर्मनी रूपरेखा - श्री राजयश सूरिम. पृ.३४ टिप्पण-१ (आनंदशंकर ध्रुव) ११. त्रिकालिक आत्मविज्ञान - श्री पनालाल गांधी पृ.२४२,२४३,२४४ १२. जैनधर्मनी रूपरेखा . श्री राजयश सूरिम. पृ.३४ टिप्पण-२ (पं.राममिश्रजी) १३. जैनधर्म और अनेकान्तवाद - पं. दरबारीलालजी पृ. १७० १४. स्याद्वाद पर कुछ आक्षेप और उनका परिहार . श्री मोहनलालजी मेहता १५. द्रव्य-गुण-पर्यायनो रास - उपा. श्रयशोविजयजी म.सा. विवेचन-श्रीधर्मधुरंधर वि.म. ___पृ.४७-४८ और 'तत्त्वार्थाधिगम सूत्र'-अभिनव टीका - ले.मुनि दीपरत्नसागर-अध्याय-५ पृ. १३१. १६. द्वात्रिंशिका - श्री सिद्धसेन दिवाकरजी म.सा. ४-१४ १७. 'नवतत्त्व' - (आगमिक संग्रह) - पूर्वाचार्य-गाथा-५७ १८. संबोध सित्तरी - श्री जयशेखर सूरि म.सा. गाथा-२ १९. श्री आत्मानंदजीजन्म शताब्दी स्मारक ग्रन्थ-हिन्दी विभाग-पृ. १७१ २०. सन्मति तर्क . श्री सिद्धसेन दिवाकरजी म.सा. श्लोक-९४ २१. सन्मति तर्क . श्री सिद्धसेन दिवाकरजी म.सा. २२. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास - ले. श्री मोहनलाल देसाई २३.. बृहत् शान्ति स्तोत्र . श्री शिवादेवी 28. The religion of very ancient Predynasic Egypt, supposed to be lakhs of years old ____also appears to be quite akin to Jainism जैनधर्मनी रूपरेखा पृ. ८९ २५. Yes, His religious (The Jains') is the only true one, upon earth, primitive faith of all mankind जैनधर्मनी रूपरेखा पृ. ६२ २६. It were a better would indeed if the world were Jain जैनधर्मनी रूपरेखा पृ.६३ २७. It is impossible to know the begining of Jainism. जैनधर्मनी रूपरेखा पृ. ४५ २८. जैन धर्मनी रुपरेखा - श्री राजयश सूरिजी म. पृ ४५ २९. 'श्री आचारांग सूत्र' - गणधर रचित-(प्रथम अंग) .. ३०. 'श्री तत्त्वार्थाधिगम सूत्र' . . श्री उमास्वातिजी म.सा.अध्याय-७ सूत्र-८. ३१. बुद्धिस्टर रिव्यू. - ले. एफ. ओ. शाहरादेर ३२. "जैनोनी फरज़ छे के तेमणे समस्त विश्वमा अहिंसा धर्म फेलाववो जोईये-सरदार पटेल जैनधर्मनी रूपरेखा . श्री राजयश सूरि म. पृ.७३ XIII Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy