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________________ कुछ गलतियों को भी सुधार करके छपवायी गयी है। ग्रन्थ की विशिष्टतायें--इस वृक्षकी निजी अद्भुतता यह है कि ऐतिहासिक तवारिख जैसे शुष्क और परिश्रम साध्य विषयको भी कमनीय कलाके मनोरम स्वरूपमें मनभावन रसिकताके साथ दर्शनीय, पठनीय और मननीय रूपमें प्रस्तुत किया है। इस वृक्षका माहात्म्य तो यह है, कि, उसमें एक ही नज़र में इस अवसर्पिणी कालके अद्यावधि मानचित्रको हमारे सामने यथास्थित, फिरभी "Short & Sweet" रूपमें प्रस्तुत किया है। फनकारने अत्यंत परिश्रमपूर्वक, कसे दिमागकी कल्पनाको झंकृत करते हुए, ऐसे रंगोलीकी सजावट-सा नयनाकर्षक-चित्ताकर्षकप्रभावोत्पादक इतिहास पेश किया है कि दर्शक प्रथम दर्शनमें ही प्रभावित होकर हर्षोल्लाससे झूम उठता है-आफरिन पोकारते हुए आचार्यश्रीको प्रशंसनीय वाक् पुष्पोसें साधुवाद देने लगता है। इस संसार स्वरूपकी, फूलदान रूपमें कल्पना करके, उसमें नैसर्गिक रूपसे ही अत्यधिक मज़बूत थड़के, तीस-पैंतीस शाखा-प्रशाखा और अनेक पत्र-पुष्पोंसे भूषित इस "जैनमतवृक्ष"में निहित महत्वपूर्ण अनेक लभ्यालभ्य तथ्यों को प्ररूपित करके चित्रकारने अपने महान उद्देश्यको सिद्ध करने में अभूतपूर्व कामयाबी हांसिल की है। जिसकालमें ऐतिहासिकताका न अधिक मूल्य था-न महत्त्व-ऐसे अंधकारमय युगमें भी इस कदर इतिहासको कलामें ढालकर-कलात्मकता प्रदान करके-गुरुदेवने सर्वको अपनी अनूठी-औत्पातिकी मतिका परिचय करवाया है। ग्रन्थका विषय वस्तु-प्रथम तीर्थपति श्री ऋषभदेव भ.से लेकर अंतिम तीर्थंकर पर्यंत चौबीस तीर्थकर, उनके गणधर-गणादिका, चरम तीर्थंकर श्रीमहावीरजीकी, श्रीसुधर्मा स्वामीजीसे श्रीआत्मारामजी म. पर्यंत, सम्पूर्ण पट्ट परंपरान्तर्गत सर्व प्रमुख आचार्य (युगप्रधानादि), उनका शिष्य परिवार-शासनोनतिकारक कार्य, साहित्य सेवा-जीवनकाल आदिका संक्षिप्त ब्यौराइस वृक्षका थड रूप बना है; सांख्य-वेदान्त, वैशेषिक, मीमांसक, बौद्ध आदि दर्शनोंकी कबकहाँसे-किससे-क्यों-किस प्रकार उत्पत्ति हुई; जैन आर्यवेद और सांप्रत कालीन अनार्य वेदवेदांगादिकी उत्पत्ति, रचयिता, शास्त्र रचनाकाल-कर्तादिकी प्ररूपणा; आत्मिक यज्ञ और परवर्ती हिंसक यज्ञकी प्ररूपणा, प्रचलन, प्रसारण किससे-कहाँसे-कबसे-क्यों-किसविध हुआ, उनका वृत्तान्त; दिगम्बर मतोत्पत्ति और उनकी शास्त्र रचना; स्थानकवासी संप्रदायका उद्भव-बाईस टोलेतेरापंथी आदिका अनुवृत्त एवं भ. महावीरकी मूल पट्ट परंपराके सुरीश्वरोंका परिवार-ग्रन्थ रचनायेंशासन प्रभावक कार्य-आदि इस वृक्षकी प्रशाखा रूप नयन पथमें आते हैं; उन शिष्यों द्वारा प्रवर्तीत गण, शाखा, कुलादि इस वृक्षके पर्ण-पत्र-पुष्प रूप चित्रांकित किये गये हैं। सोने में सुहागा--उपरोक्त वर्णित मूल वृक्षके दोनों पार्श्वमें दो लतायें चित्रित की हैं, जो मूल वृक्षकी सुंदरतामें वृद्धि करते हुए वृक्षकी क्षुल्लक अपूर्णताको पूर्ण करने में सहयोगी बनती हैं। दोनोमें से एक ओरकी लता, इस अवसर्पिणीकालके वेशठ शलाका पुरुषों का जिक्र प्रदर्शित करती है, जबकि दूसरी ओरकी लता अंतिम अरिहंतके शासनकालमें हुए जैन-जैनेत्तर राजाओं द्वारा किये गए महत्त्वपूर्ण शासनोनतिके कार्य-धर्ममय अहिंसा आदिके प्रवर्तनरूप कार्य एवं (179 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
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