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अन्यतीर्थीओं की भी जिन प्रतिमामें देव-तुल्य मान्यता; अन्य तीर्थीओंके स्थानमें जिन प्रतिमा जैनों द्वारा ही अपूजनीय-अवंदनीय क्यों और कैसे;--इन सभीका स्पष्टीकरण करते हुए समवायांगानुसार आनंदादि अनेक श्रावकों द्वारा जिनमंदिर निर्माण-जिनप्रतिमा पूजन-आदि तथ्योंकी सिद्धि की है। सत्रहवें प्रश्नोत्तरमें-उपरोक्त आनंद श्रावक समान अंबड़ तापसको लक्ष्य करके कईं असत्य प्ररूपणायें की हैं इनका प्रत्युत्तर देते हुए-दोनों के नियमों में अंतर और उस अंतर के कारणों की स्पष्टता की गई हैं। अठारहवें प्रश्नोत्तरमें-सात क्षेत्रान्तर्गत भरतचक्रीसे लेकर अद्यावधि अनेक श्रावकों द्वारा जिनमंदिर और जिनप्रतिमा निर्माणमें द्रव्य-धनके व्ययकी सिद्धि अनेक सूत्रों के संदर्भ द्वारा करके , अन्य ज्ञानादि पांच क्षेत्रों के लिए धन व्ययकी विधि-कारणादिकी अनुयोग द्वारा दि सूत्र संदर्भसे अनेक युक्त-युक्तियों से चर्चा की गई है। उन्नीसवें प्रश्नोत्तरमें-द्रौपदी द्वारा की गई जिन प्रतिमा पूजाका अनेक कारणोंसे निषेध किया गया है-यथा-द्रौपदीकी पूजामें सूर्याभदेवकी ही भलामण, अन्य किसीने जिनपूजन किया नहीं, द्रौपदीने भी एक बार ही किया, द्रौपदीकी पूजा भद्रा-सार्थवाही जैसी होनेसे वह देवभी अन्य ही होने की शक्यता, स्त्रीको अरिहंतके संघट्टाका निषेध, पूर्व जन्ममें सात अयोग्य कार्य करना, पांच पतिका नियाणा करनेसे सम्यक् दृष्टि नहीं, उसके माता-पिताभी मिथ्यात्वी, पद्मोत्तरके घर उसका तप करना-जिनपूजा नहीं, अचेलक अरिहंतको वस्त्र पहनाना आदि अनेक कारणों के अतिरिक्त अन्य कारण-राजगृहीमें जिन मंदिरका अभाव, द्रौपदीकी पूजा अवधिजिनकी होने की संभावना, जिनपूजामें षट् निकाय जीवों की विराधना अयोग्य, कोणिकका भी भाव तीर्थंकरको न पूजना, अन्य देवों कीभी नमुत्थुणंसे वंदना करना-आदि अनेक कुतर्कोका उत्तर ज्ञातासूत्र, उववाय, भगवती, दशाश्रुतस्कंध, प्रश्नव्याकरण, नंदीसूत्र, अनुयोगद्वार, उपासक दशांग, ओघनियुक्ति आदिसे अनेक सयौक्तिक स्पष्टीकरण देकर युक्तियुक्त विवेचनसे द्रौपदीका जिनप्रतिमा पूजनको सिद्ध किया गया है। बीसवें प्रश्नोत्तरमें- सूर्याभदेव और विजयपोलीएके 'जिन प्रतिमा पूजन' विषय निषेधार्थ बीसों कुयुक्तियाँ प्रस्तुत करते हुए उत्सूत्र प्ररूपणा और मनघडंत मिथ्या सूत्रार्थों का राजप्रश्नीय, जीवाभिगमादि सूत्रों के उद्धरण देकर प्रत्युत्तर देते हुए सूर्याभदेव और उनकी शुभ क्रियाके निंदकको दुर्लभबोधि सिद्ध किया है। इक्कीसवें प्रश्नोत्तरमें-उपरोक्त देवों द्वारा किया गया 'जिनदाढ़ा पूजन'की निरर्थकताके कथनके कारणोंका- 'अधम्मिया' देवों द्वारा अथवा मिथ्या दृष्टि अभव्य देवों द्वारा जीत आचार-लौकिक व्यवहार या कुलधर्म रूप की गई जिन दाढ़ा पूजा मोक्ष प्राप्तिका कारण नहीं बन सकती; ऋद्धिवंत नवग्रैवेयकका अभव्यत्वी देव-अभव्य संगम देव-तामली तापसका जीव इशानेन्द्र आदिके उपहासजनक आधारों पर जिनदाढा पूजाका निषेधका-प्रत्युत्तर जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति, अभव्य कुलक, भगवतीसूत्र, जीवाभिगमसूत्रादिके
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