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रामदित्तामलजी आदि क्षत्रिय, कृष्णचंद्रादि ब्राहमण, लाला गोंदामलजी, पंडित श्रद्धारामजी, पंडित लेखारामजी, आर्यसमाजी लाला मुन्शीरामजी, लाला देवराजजी आदि, मुन्शी अब्दुल रहमानादि मुस्लिम-आदि अनेक जैनजैनेतरोंको आकर्षित कर गई थीं और आपके पक्के भक्त के रूपमें आजीवन आपकी सेवा-आज्ञा शिरोधार्य करते रहे थे । अनेक स्थानवासी साधु-श्रावकादि आपको जीतनेके लिए आये लेकिन आपसे जीते गए और आपके विचारोंसे सहमत हुए। २२ (३) आपकी शुभ प्रेरणा से ही गुजरातसे अनेक जिनबिम्ब एवं श्री मंदिरादिके निर्माण हेतु धन प्राप्ति पंजाब के लिए -बिनबादल बरसात की भाँति-हुई थी । (४) प्रबल योगकारक उच्चके शुक्र पर गुरुकी शुभ दृष्टि के कारण- 'विश्व धर्म परिषद'-चिकागोकी ओरसे आमंत्रित होने पर भी मुनि जीवनकी मर्यादाके कारण वहाँ जाने में असमर्थ लेकिन श्री वीरचंदजी गांधी द्वारा अक्षर देह से (चिकागो प्रश्नोत्तर-ग्रंथ द्वारा) वहाँ पहुँच कर विश्व विख्यात हुए। २१ तृतीय स्थानसे भ्रातृ सुख-पराक्रम-साहस-प्रवासादिका निर्देशन दृष्टव्य है
__ तृतीय स्थानमें मेष राशिमें राहु और चंद्र युति संबंधसे बिराजित है। तृतीयेशमंगल, षष्ठम्-उपचय स्थानमें उच्चके गुरुके साथ युति संबंधसे, नीचका होने पर भी, 'नीचभंग' योग प्राप्त करता है। इसके अतिरिक्त तृतीयेश मंगल और षष्ठेश-चंद्रका परिवर्तन-योग भी शुभ फलदाता है। नवम स्थानमें शनिसे प्रतियुति संबंध भी महत्त्वपूर्ण फल प्रदान करता है। तृतीय उपचय स्थान स्थित बलवान राहुके कारण पुज्य गुरुदेव साहसिकता, अनुपमेय पराक्रम, शेर जैसी शूरवीरता, निभीकता, सतत प्रवृत्तिशीलता, ओजस्वीता, अन्यको वश करनेवाली प्रभावकता, त्वरित निर्णयशक्ति, गूढविद्या प्रति प्रेम, स्वतंत्र-मौलिक विचार और चिन्तन शक्ति प्राप्त करते हैं। राहु और चंद्रकी युतिके कारण अद्भूत कल्पना-शक्ति और एवोर्ड प्राप्त विजयशीलता के स्वामी बनते
हैं।२४
मेष राशिमें राहु स्थित होनेसे वक्तृत्व कलाकी अनोखी अदा प्राप्त होती है और आप शत्रुजयी बनते हैं। धार्मिक क्षेत्रमें ईच्छित कार्य संपन्नतामें सहधर्मी-उत्तम साधुओंका सहयोग प्राप्त होता है। नवम स्थानमें शनिसे प्रतियुतिके कारण आध्यात्मिक उन्नति के शिखर पर बिराजमान होते हैं। अपरिमित आत्मिक-आनंददायी आराधना कर सकते हैं।
अशुभ स्थानका स्वामी षष्ठेश-चंद्र तृतीय स्थानमें बिराजमान होने के कारण तृतीय स्थानका सुख नष्ट करें लेकिन बलवान राहु केवल भ्रातृसुखके अतिरिक्त सर्व सुखों की रक्षा करता है-नष्ट नहीं होने देता। इसलिए उपरोक्त सर्वगुण हमें श्री विजयानंदजी म. सा. के जीवनोद्यानमें सवासित पष्पकी भाँति आकर्षक लगते हैं।
शनि और राहु की प्रतियुति संघर्षमय जीवनमें भी एक अनूठा कीर्तिमान स्थापित करने के लिए सौभाग्यशाली बनाती है। राजस्थान के रेगिस्तान और मालवाके विहार समय- आदिवासी भील से भेंट होने पर, परेशान करनेवाले उस भीलकी तलवार उठायी हुई कलाई पकड़कर ,उसी स्थितिमें गांवमें ले जाकर साहसिकता, शूरवीरता और पराक्रमका परिचय दिया, तो उसे बिना किसी प्रकार की शिक्षा
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