SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवन परिचय एवं भ.महावीरकी पट्ट परंपराके श्रीसुधर्मास्वामी आदि अनेकानेक गुणाढ्य सूरिपुंगवोंके क्रमिक परिचय देते हुए उस परंपरामें तिहत्तरवें स्थान पर अपने आचार्य प्रवर श्रीमद्विजयानंद सुरीश्वरजी म.का स्थान निश्चित किया गया है । द्वितीय पर्वमें सत्यकी ज्वलंत ज्योत या सत्यनिष्ठाकी प्रतिमूर्तिरूप उन महामहिम विलक्षण व्यक्तित्वके संकायोंको-जन्मजात और अर्जित किये गुण-स्वभाव-लक्षण और विश्वस्तरीय, स्वपर कल्याणकारी, सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक, साहित्यिक, विभिन्न कलात्मक व्यक्तित्व एवं प्रवचन प्रभावक, अजेय वादीत्व, अप्रतीम लोकप्रियता तथा अनेक आत्मिक, आध्यात्मिक गुण-लब्धि-सिद्धियाँ प्रापकादि गुणोंकी गागरको अंतर्साक्ष्य एवं बहिर्साक्ष्याधारित संचित करके उन अक्षुण्ण-अमूल्य जीवन मूल्योंको संक्षेपतः अवतारित किया है । तो तृतीय पर्वमें आचार्यश्रीके जीवनतथ्योंका सम्बन्ध ज्योतिष शास्त्रके अवलम्बनसे, पूर्व-जन्मोपार्जित कर्मसे स्थापित करनेका प्रयत्न किया गया है । अर्थात् पूर्व जन्मकृत कर्माधारित घटनाओंका जीवनमें निश्चित क्रमसे, निश्चित कालमें, निश्चित प्रमाणमें, निश्चित रूपसे अवतरण होता है जिसे ज्योतिष शास्त्रके सहयोगसे ज्ञात करके पूर्व प्रबन्धित योजनाओंके बल पर, उन अनिच्छनीय घटनाओंका प्रतिषेध करते हुए जीवनको कल्याणकारी व सौंदर्यशाली बना सकते हैं । ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक, आध्यात्मिकादिके परिप्रेक्ष्यमें 'लाखोमें एक' के अभिव्यंजक, उदारचरित, उन्नीसवीं शतीके अखंड़ तेजस्वी ज्योतिर्धर-श्रीमद्विजयानंद सुरीश्वरजीके इस पार्थिव प्रकाश पुंजके निरीक्षणान्तर प्ररूपणाका स्रोत उस अतीव महत्त्वपूर्ण फलककी ओर मोड़ पाता है, जहाँ आपकी प्रौढ़ साहित्यिक रचनाओंका सरसरी दृष्टिसे सिंहावलोकन करते-करते आपके विशाल साहित्य अध्येता, गहन चितक, मौलिक मीमांसक, शिष्ट संस्कृतिके अभिभावक, सामान्य जीवन प्रसंगोंमें भी आध्यात्मिक परामर्शके अनुसंधाता, अजस्र एवं अकाट्य तर्कशक्ति सम्पन्न अजेयवादी, न्यायाम्भोनिधि, धुरंधर विद्वान, तत्कालीन धीमान् सुज्ञजनोंके पृष्टव्यसाहित्य मनीषी, भगवद् भक्त हृदयी, जन्मजात, नैसर्गिक कवि-कौशल एवं कलाप्राविण्य आदि रूपोंका विश्लेषणात्मक दिग्दर्शन करवाया गया है । सर्व दर्शनों एवं सर्व प्रचलित धर्मों के बाह्याभ्यंतर स्वरूपके एक एक विषयको विविध दृष्टिबिंदुओंसे स्याद्वाद और अनेकान्तवादकी निष्पक्ष तुला पर, पैनी दृष्टिसे, दुर्द्धर्ष परिश्रम साध्य, तटस्थ परिक्षण करने में ही अपने स्व और सर्वको समर्पितकर्ता और उस शुद्ध स्वर्णिम साहित्यको सरल फिर भी प्रभावोत्पादक, सुगठित एवं साहित्यिक सजावटसे सुशोभित, अनूठी शैलीमें प्रस्तुतकर्ता, श्रेष्ठ समालोचक व प्रमाणिक प्रतिपादक, जैनधर्मके विश्वस्तरीय प्रसारक साहित्यविद् आचार्य प्रवरश्रीके इस असाधारण-विलक्षण साहित्यके पर्यालोचनको पर्व चतुर्थसे अष्टममें समाहित किया है । जिनमें चतुर्थमें गद्य-पद्य कृतियोंके विषय वस्तुका परिचय, पंचममें गद्य साहित्य एवं षष्ठममें पद्य साहित्यकी समालोचना, सप्तममें उसका विश्वस्तरीय प्रभाव और अष्टममें पूर्वाचार्यों एवं समकालीन साहित्यविदोंके प्रभाव और तल्यातुल्यता समाविष्ट की गई है । अंतिम पर्वमें इन सभीका संकलन-उपसंहार रूपमें प्रणीत किया गया है । ऋण स्वीकार एवं धन्यवाद :--- इस महत्त्वपूर्ण-महान कार्यकी सिद्धिमें अनेक कार्यकर्ताओंकी कार्यशक्तियाँ एवं हार्दिक निष्ठापूर्ण सहयोग उल्लेखनीय है, जिनकी बिना सहायता इसकी परिसमाप्ति होना शायद ही संभव बन पाता | जिनके कृपावंत ऋणकी बोझिलता भी जीवनके परम आहलाद रूप अनुभूत होती है, ऐसे परमोपकारी आचार्यद्वयसंशोधन क्षेत्रमें पदार्पणके लिए सर्वप्रथम प्रेरणास्रोत, सरलाश्रयी श्रीमद्विजय जनकचंद्र सुरीश्वरजी म.सा. और श्रीमद्विजयानंद सुरीश्वरजी म.सा.की स्वर्गारोहण शताब्दी निमित्त शोधकार्यकी अग्रीमताको लक्ष्य करके शोध प्रबन्धके 'विषय को सूचितकर्ता श्रीमद्विजय इन्द्रदिन्न सुरीश्वरजी म.सा.-के अंतःकरणके प्रेरणा-पियूषवर्षी आशीर्वाद एवं बारबार प्रोत्साहन देकर किये गये परमोपकार, आजीवन मेरी स्मृतिके सीमा प्रतीक-स्मारक रूप बने रहेंगें। साथ ही साथ अन्य जिन आचार्य भगवंतों एवं मुनि भगवंतोंकी अमीदृष्टि भी इसे अभिसिंचित करती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002550
Book TitleVijayanandji ke Vangmay ka Vihangavalokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy