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________________ प्राक्कथन (अंतर दर्पण दर्शन) महा समुद्र' सलीलकी थाह प्राप्त करना 'रत्नाकर' की गहनताका ताग लेना, शायद मानवके लिए साधारण सी बात है, वनिस्वत दुष्करातिदुष्कर ज्ञानांभोनिधिके महार्थ रत्नांबारकी संपूर्ण रूपेण उपलब्धिः जिसे अर्जित किया जा सकता है, एकमात्र 'इन्द्र' तुल्य महामहिमके कृपावंत सहयोग युक्त अथक परिश्रम और अनवरत प्रयास से । अतः 'विनीत' 'जगत'को 'नित्यानंद'का आस्वाद करवानेवाली उस 'वल्लभ' वस्तुकी प्राप्त्यानंतर होनेवाला 'आत्मानंद' का अनुभव ही अलौकिक अध्यात्म 'किरणों' का 'जनक माना जा सकता है। ; संयम जीवन पूर्व ज्ञानार्जनके संजोये हुए स्वप्नोंको उजागरकर्ता - साधुजीवनमें संशोधन कार्यक्षेत्रमें पदार्पण करके आत्मज्ञान कंचलको विकरवर करवानेवाला, अमूल्य परामर्श प्राप्त हुआ-सर्वधर्म समन्वयी, प्रेरणामूर्ति प. पू. श्रीमद्विजय जनकचंद्र सुरीश्वरजी म.सा. से और न्यायांभोनिधि, संविज्ञ मार्गीय आद्याचार्य श्रीमद्विजयानंद सुरीश्वरजी महाराजजीकी स्वर्गारोहण शताब्दी निमित्त उन्हीके व्यक्तित्व एवं कृतित्व विषयक संशोधनकी दिशा प्रदान करके इस कार्यक्षेत्र में अग्रसर होने में प्रोत्साहित किया, परमार अत्रियोद्वारक, चारित्र चूडामणि श्रीमद्विजय इन्द्रदिन सुरीश्वरजी म.सा.ने. । परिचय :--- उदयाचल पर अपनी आशालताकी लालिमा बिखेरकर जन-मनको प्रोत्साहित करनेवाली प्रत्येक उषा और उम्मीदोंका थाल भरने हेतु अस्ताचलकी गोदमें समा जानेवाली प्रत्येक संध्या समयकी निरंतर रफ्तारमें गतिशील है । ऐसे अनवरत काल प्रवाहकी बहती धारामें न बहनेवाले, चलती गाड़ी पर न चढ़नेवाले, हवाई पंखोंकी उड़ान न भरनेवाले अपने अनूठे व्यक्तित्व महत् प्रभाव-प्रतिभा और प्रताप के बल पर सदियों पर्यंत जन मानसको प्रेरित करनेवाले अपूर्व अनुपम, आचार-विचार-वाणीसे असाधारण स्थायी मान- स्तंभ स्थापित करनेवाले युगप्रधान महापुरुष न्यायाम्भोनिधि-संविज्ञ आद्याचार्य श्रीमद्विजयानंद सुरीश्वरजी म.सा. की स्वर्गारोहण शताब्दी समारोहके त्रिवर्षीय विविध आयोजनोंमें उन महाप्राज्ञ दिग्गज विद्वानके साहित्यकी परिमार्जना रूप शुद्ध हिन्दीमें उसका अनुवाद समालोचना संशोधनादिको समाविष्ट किया गया था। वर्तमान गवाधिपति गुरुदेव श्रीमद्विजय इन्द्रदिन सुरीश्वरजी म.सा. ने संशोधन कार्य ( शोध-प्रबन्ध ) के लिए मुझे अनुप्राणित करके प्रोत्साहित किया । परिणामतः दस वर्ष पूर्व श्रीमद्विजय जनकचंद्र सुरीश्वरजी म.सा. द्वारा वपन की गई मेरी अंतरंग भावनाको अंकुरित होनेका अवसर अनायास प्राप्त होनेसे मनमयूर भावविभोर बन कर नर्तन करने लगा और कार्यारम्भ हुआ हम सबकी छत्रछाया प्रवर्तिनी साध्वीश्री विनीता श्रीजी निश्रामें । म.सा. की पुनित व्यक्तित्व परिवेश : विशिष्ट वाङ्मयसे प्रस्फुटित वैचारिक वलयोंसे मुखरित होनेवाला मननीय-मीमांसकसमलोचक- दार्शनिक सैद्धान्तिक विधेयात्मक अकाट्य तर्क पंक्तियोंसे वादी मुखभंजक समस्त मानव समाज हितकांक्षी स्वरूपः काव्यसे प्रवाहित परमात्मा प्रति सम्पूर्ण समर्पित एवं मुक्ति प्राप्तिकी नपसे छटपटाता भक्त हृदय-अमोध काव्य कौशल युक्त सूत्रात्मक समर्थ उपदेष्टा रूप और आत्मानंदकी अनुभूतिके द्योतक, सर्वोत्कृष्ट सत्य गवेषक, सत्य प्ररूपक, सत्य प्रसारक जीवनशैलीके निर्मल निर्झर सदृश प्रवाहित असाधारण अद्वितीय उदारचरित महानुभावके व्यक्तित्व एवं कृतित्वको आवेक्षिकी दृष्टिसे टटोलनेका प्रसंग प्राप्त होनेसे में अपने आपको सौभाग्यशालीनी मानती हूँ । आपके उत्तुंग शिखर सदृश साहित्यका अवगाहन करते हुए मैंने अपने आपको वामन अनुभूत किया । कहाँ सागर समान विशाल श्रुताभ्यासी, सिंधु सदृश गंभीर चिंतक, रत्नाकर तुल्य ओजस्वी - बहुमुखी प्रतिभाके प्रतिमान और कहाँ मैं ? फिरभी आत्माको आनंद प्रदाता - सदाबहार विकस्वर पुष्प सदृश मंद-मंद मुस्कराते और दिव्याशिष बरसाते हुए गुरुदेव श्री आत्मानंदजी म. की प्रेरक प्रतिमाने मानो मेरे अंतस्तलको नवपल्लवित किया । मैंने हौसला पाया और उनकी तरह दृढ़चित्त बनकर कार्यको सम्पन्न किया। जैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002550
Book TitleVijayanandji ke Vangmay ka Vihangavalokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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