________________
हार्दिक समर्पण
शताब्दी की का प्रकाश भरन
अपने दिल के अरमानों का अर्घ्य धरना चाहती हूँ
ना चाहती
Jain Education International
समुद्र सूरीश्वरजी
* श्री आत्म-वल्लभम.सा. का पट्ट परम्परा के समर्थ एवं विशिष्ट संवाहक
* सामाजिक गगनांचल के
तेजस्वी तारक
* जन-जन के श्रद्धा केन्द्र * धार्मिक क्षितिजांचलों के सक्षम सुयोग्य नेता
* परमार क्षत्रियोद्धारक चारित्र चूडामणि
* जैन दिवाकर, शिशुसम सरल * वात्सल्य वारिधे परम श्रद्वेय आचार्य प्रवर
श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वरजी म.सा.
विश्व विरल विभूति
** ज्ञानार्जनके संजोये हुए मेरे अनेक
स्वप्नों के उजागर कर्ता;
* संशोधन क्षेत्रमें पर्दापण हेतु अपूर्व एवं अमूल्य परामर्शदाता
युगप्रधान संविज्ञ आद्याचार्य
प. पू. दादा गुरुदेव के वाड्मय-विषयक संशोधन लक्षित महानिबन्ध के हार्दिक प्रेरणादाता इन
सूरि पुंगव
द्वय के
कर
कमलों,
में
* अध्यात्म ज्ञान कवल को विकस्वर करनेवाले
उदयाचल के रक्तिम रविराज
* सर्व धर्म समन्वयी * अध्यात्म योगीराज एवं * आत्मानंदी अनुभवसे
अलौकिक अध्यात्म किरणों
जनक परम श्रद्वेय आचार्य प्रवर
श्रीमद विजय जनक चन्द्र
सूरीश्वरजी म.सा.
डॉ. किरण यशाश्री जी
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org