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________________ हैं तैजस् शरीर व कार्मण शरीर । ये दोनों प्रकार के शरीर समग्र ब्रह्मांड में सभी संसारी जीवों को होते हैं । हाँ, जो जीव समग्र कर्म के सभी बंधन को तोडकर मोक्ष में गया है अर्थात् अष्टकर्म से मुक्त हो गया है, उसको इन पाँच शरीरों में से एक भी शरीर नहीं होता है । अतः उसे अशरीरी कहा जाता है । तैजस्-कार्मण शरीर को अंग्रेजी में Vital body कहा जाता है । औदारिक शरीर या स्थूल भौतिक शरीर के बारे में आधुनिक विज्ञान ने विशिष्ट अनुसंधान करके बहुतसी जानकारी उपलब्ध करायी है किन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से उसका कोई मूल्य नहीं है । तैजस् शरीर जिसे सूक्ष्म शरीर भी कहा जाता है जो आहार का पाचन करके स्थूल शरीर के घटक द्रव्य खून, चरबी, माँस, अस्थि, मज्जा, इत्यादि बनाता है, वह और अपने स्थूल व सूक्ष्म शरीर के स्वरूप आदि जिनके आधार पर तय होते हैं, वही| कार्मण शरीर, जिसे अन्य लोग कारण शरीर भी कहते हैं, दोनों बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। देवताओं के चित्र में, उनके मस्तक के पीछे बताया गया भामंडल, उनकी दिव्यता का प्रतीक है । वस्तुतः वह उनके सूक्ष्म शरीर तैजस् शरीर की शुद्धि का प्रभाव है । अन्य जीवों में और मनुष्य में भी ऐसा घिरावक्षेत्र (परिमंडल) होता है, जिसे आभामंडल (aura) कहा जाता है । वस्तुतः यह आभामंडल जैविक विद्युचुंबकीयक्षेत्र (bio-electromagnetic field) ही है । जैसे प्रत्येक चुंबक का अपना चुंबकीय क्षेत्र होता है वैसे ही प्रत्येक जीव का अपना प्रभाव क्षेत्र होता है । मनुष्य के इस आभामंडल का आधार सूक्ष्म शरीर तैजस् शरीर की शुद्धि पर निर्भर करता है और उसका आधार कार्मण शरीर द्वारा ग्रहण किये गये पुद्गल परमाणु व उसके वर्ण, गंध, रस और स्पर्श पर है । यद्यपि शुभ या अशुभ पुद्गल परमाणु के ग्रहण का आधार अपनी मनःस्थिति अर्थात् मन द्वारा किये गये शुभ या अशुभ विचार पर है । अतः उनके परिणाम स्वरूप आभामंडल की तीव्रता व शुद्धि-अशुद्धि का आधार मन या विचार पर है । इस आभामंडल को कुछेक लोग शक्तिकवच भी कहते हैं और यह मन जिसको कुछ लोग छट्ठा इन्द्रिय (sixth sense) कहते हैं वह भी सूक्ष्म परमाणुसमूह एकम से बना है । श्री अशोक कुमार दत्त इस आभामंडल को देख सकते हैं । वे जैन नहीं हैं लेकिन उनका अनुभव जैन दार्शनिक मान्यताओं का समर्थन करता है 30 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002549
Book TitleJain Dharma Vigyana ki Kasoti par ya Vigyana Jain Dharma ki Kasoti par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandighoshvijay
PublisherBharatiya Prachin Sahitya Vaigyanik Rahasya Shodh Sanstha
Publication Year2005
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Science
File Size6 MB
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