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________________ विभागों में दोनों तरफ आये हुये कण उसी बिन्दु की सीमा का उल्लंघन करके दूसरे विभाग में कदापि नहीं आ सकते हैं। अर्थात् प्रकाश से कम वेग वाले कण का वेग कभी भी प्रकाश से ज्यादा नहीं हो सकता और प्रकाश से ज्यादा वेग वाले कण का वेग कदापि प्रकाश के वेग से कम नहीं हो सकता | किन्तु जैनदर्शन इस मान्यता का स्वीकार नहीं करता है । ऊपर बताया उस प्रकार कोई भी पदार्थ, जिसका वेग प्रकाश से ज्यादा है, वह अपना वेग कम करते हुये शून्य भी कर सकता है और वही पदार्थ जब पुनः गतिमान होता है तब उसका वेग बढते बढते प्रकाश से भी हजारों गुना ज्यादा हो सकता है । संक्षेपमें, आइन्स्टाइन के विशिष्ट सापेक्षता सिद्धांत अनुसार पदार्थ का वेग जैसे-जैसे बढ़ता है वैसे-वैसे उस पदार्थ की लंबाई में कमी होती है, द्रव्यमान बढता जाता है और समय / काल की गति कम होती है इत्यादि जैन तत्त्वज्ञान के परिप्रेक्ष्य में केवल काल्पनिक ही है वास्तविक नहीं है । इस प्रकार आइन्स्टाइन का विशिष्ट सापेक्षता सिद्धांत केवल दृश्य जगत की ही कुछेक घटना को समझा सकता है । जबकि भगवान महावीरस्वामी का सापेक्षता सिद्दांत दृश्य-अदृश्य जगत की सभी घटना को समझा सकता है क्योंकि जैन धर्म भी विज्ञान है इतना ही नहीं परम विज्ञान है । विज्ञान | केवल भौतिक पदार्थों पर ही लागू होता है, समझा सकता है जबकि जैन धर्म चेतना - चैतन्य, आत्मा को भी स्पर्शता है, समझा सकता है जिनको स्पर्श करना या समझाना प्रायः असंभव लगता है । विज्ञान केवल भौतिक पदार्थ को ही बदल सकता है, नया स्वरूप दे सकता है । जबकि जैन धर्म चेतना आत्मा जो देखी नहीं जा सकती है, स्पर्श भी नहीं किया जा सकता उसको भी बदल सकता है । अतएव जैन धर्म परम विज्ञान (Supreme science) है | Jain Education International 28 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002549
Book TitleJain Dharma Vigyana ki Kasoti par ya Vigyana Jain Dharma ki Kasoti par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandighoshvijay
PublisherBharatiya Prachin Sahitya Vaigyanik Rahasya Shodh Sanstha
Publication Year2005
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Science
File Size6 MB
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