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निम्नस्तर से ऊपर के स्तर पर जा सकता है। जैनदर्शनानुसार समय काल का सूक्ष्मतम अंश है, और ऐसे असंख्य समय इक्कट्ठे होकर एक | आवलिक बनती है, और ऐसी 5825.42 आवलिका इक्कट्ठी होकर एक सैकंड होती है । जैनदर्शन अनुसार ब्रह्मांड मर्यादित व स्थिर होने पर भी | उसके ऊपर के स्तर से निम्न स्तर का अंतर इतना अधिक है कि इसे शायद गाणितिक अंक या समीकरण द्वारा बताया नहीं जा सकता है । अतः जैनदर्शन अनुसार भी आइन्स्टाइन की पहली पूर्वधारणा गलत सिद्ध होती है तथा दूसरी पूर्वधारणा भी जैनदर्शन अनुसार गलत सिद्ध होती है । | अतः उसके आधार पर किया गया गणित भी गलत है ।
संक्षेप में, आइन्स्टाइन की दोनों पूर्वधारणा गलत होने की वजह से | आइन्स्टाइन के विशिष्ट सापेक्षता सिद्धांत व सामान्य सापेक्षता सिद्धांत | कुछेक मर्यादा तक ही अर्थात् दृश्य विश्व के लिये प्रकाश से कम गतिवाले पदार्थ के लिये लागू होते हैं किन्तु प्रकाश से ज्यादा गतिवाले पदार्थ के लिये उसका उपयोग नहीं हो सकता ।
आइन्स्टाइन की अपनी पूर्वधारणा के अनुसार व उनके गणित के अनुसार -
1. जैसे-जैसे पदार्थ का वेग बढता जाता है वैसे-वैसे उस पदार्थ की लंबाई में कमी होती है । यदि पदार्थ का वेग प्रकाश के वेग के समान हो जाय तो उस पदार्थ की लंबाई शून्य हो जाती है ।
2. जैसे-जैसे पदार्थ का वेग बढता जाता है वैसे-वैसे उस पदार्थ का | द्रव्यमान बढता जाता है । यदि पदार्थ का वेग प्रकाश के वेग के समान हो जाय तो उस पदार्थ का द्रव्यमान अनंत हो जाता है ।
3. जैसे-जैसे पदार्थ का वेग बढता जाता है वैसे-वैसे उस पदार्थ के लिये समय / काल की गति कम होती है । यदि पदार्थ का वेग प्रकाश के वेग के समान हो जाय तो उस पदार्थ के लिये समय स्थिर हो जाता है।
अतः इस गणित के आधार पर किसी भी पदार्थ का वेग प्रकाश से ज्यादा नहीं होता है । अतएव वर्तमानकालीन विज्ञानीयों को अनिवार्यतः | मानना पड़ा कि प्रकाश से ज्यादा वेग वाले कणों का अस्तित्व होने पर भी | उसका वेग कदापि प्रकाश के वेग से कम नहीं हो सकता है । उन्होंने प्रकाश के वेग को एक ऐसा बिन्दु मान लिया कि उससे होने वाले दो
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