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करते हैं । और बिना श्वासोच्छवास कोई भी जीव जी नहीं सकता है ऐसा आधुनिक विज्ञान भी कहता है । जैन शास्त्रों के अनुसार वनस्पति सहित पृथ्वी अर्थात् पत्थर, मिट्टी इत्यादि , पानी, अग्नि व वायु में भी जीव हैं । वे भी श्वासोच्छ्वास की क्रिया करते हैं तब इस वर्गणा के परमाणुसमूह का उपयोग निश्चितरूप से करते हैं ।
मनो वर्गणा के परमाणुसमूह के परमाणु की संख्या श्वासोच्छवास वर्गणा के परमाणुसमूह में स्थित परमाणुओं की संख्या से ज्यादा होती है । इस वर्गणा के परमाणुसमूह का उपयोग मनवाले मनुष्य व प्राणी कर सकते हैं । इनका विशेष उपयोग विचार करने में ही होता है । वर्तमानकालीन विज्ञानी भी मन को तीव्र गतिवाला मानते है क्योंकि अपना मन एक सैकंड में या उनसे भी सूक्ष्म समय में लाखों या करोडों माईल दूर जा सकता है और | उनके बारे में विचार कर सकता है । यह चमत्कार मन व मनोवर्गणा के परमाणुसमूह का ही है । __ अब अंत में अत्यंत सूक्ष्म परमाणुओं के समूह स्वरूप कार्मण वर्गणा की बात आती है । इस वर्गणा के परमाणुसमूह में सब से ज्यादा परमाणु होते हैं। । इस वर्गणा का उपयोग प्रत्येक सजीव पदार्थ करता है । सभी सजीव पदार्थ की आत्मा से संबद्ध कर्म, इस कार्मण वर्गणा के परमाणुसमूह स्वरूप ही होते हैं । यदि कोई विज्ञानी, इस वर्गणा के परमाणुओं को किसी भी यंत्र से देखने में समर्थ हो सके, तो वह उसी व्यक्ति या सजीव पदार्थ के भूत-भविष्य व वर्तमान देखने में समर्थ हो सकता है किन्तु इस वर्गणा के परमाणु किसी भी यंत्र से नहीं देखे जा सकते हैं । इसिलिए तो आध्यात्मिक शक्ति व अतीन्द्रिय ज्ञान चाहिये । जो वर्तमान समय में प्राप्त करना अशक्य नहीं तथापि बहुत दुर्लभ तो है ही ।
विज्ञानीयों ने अणु, परमाणु तथा इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, पोझिट्रॉन, क्वार्क इत्यादि बहूत से मूलभूत सूक्ष्म कणों का आविष्कार किया हैं वे सभी इस वर्गणा के प्रथम प्रकार औदारिक वर्गणा में आ सकते हैं ।
जैन शास्त्रकारों ने पुदगल द्रव्य के वर्णन में इसके वर्ण के मुख्य रूप से| | पाँच प्रकार बताये हैं । सफेद, लाल, पीला, नीला (भूरा) व काला || | चित्रकाम के विषय में सफेद व काले रंग को छोडकर मुख्यरूप से तीन रंग बताये हैं । बाकी के सभी रंग इन तीनों रंगों के संयोजन से बनते हैं ।
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