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प्रचंड होती है कि वे जहाँ जहाँ विहार करते हैं, वहाँ वहाँ
उनके जाने के बाद भी प्रत्येक जीव को छः छः माह तक केवल सुख और सुख का ही अनुभव होता है । अतः परमात्मा के इस प्रसंग को केवलज्ञानकल्याणक कहा जाता है |
5. आयुष्य कर्म की सत्ता जब तक होती है तब तक उपदेश देकर परमात्मा सभी जीवों का कल्याण करते हैं किन्तु आयुष्य कर्म खत्म होते ही परमात्मा इसी पार्थिव शरीर का त्याग करके शुद्ध आत्म स्वरूप को प्राप्त करते हैं । परमात्मा के मोक्षगमन स्वरूप इसी प्रसंग को निर्वाणकल्याणक कहतें हैं । __ऐसे परम पवित्र महापुरूष श्रमण भगवान श्री महावीरस्वामी के जन्म को आज 2600 साल से ज्यादा और निर्वाण को 2530 साल से ज्यादा समय व्यतीत हो चुका है । उनके द्वारा प्ररूपित सिद्धांत आज भी विज्ञान की कसौटी पर खरे उतरतें हैं । अतएव वे सर्वग्राह्य व सर्वमान्य होते हैं ।
The notion that all opposites are polar—that light and dark, winning and losing, good and evil, are merely different aspects of the same phenomenon—is one of the basic principles of the Eastern way of life.
Fritjof Capra
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