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पौद्गलिक होता है । पुद्गल अर्थात् परमाणु । तीर्थंकर नामकर्म की कार्मण वर्गणा में स्थित परमाणुओं में उत्कृष्ट प्रकार के वर्ण, गंध, रस और स्पर्श होते हैं । उत्कृष्ट आत्मसाधना द्वारा प्राप्त आत्मशक्ति और तीर्थकर नामकर्म की पुण्याई द्वारा प्राप्त पौद्गलिक शक्ति के समागम द्वारा एक प्रचंड ऊर्जा का प्रादुर्भाव होता है जिसे आर्हन्त्य कहा जाता है । आधुनिक विज्ञान की परिभाषा में इस शक्ति को जैविक विद्युचुंबकीय शक्ति का एक उत्कृष्ट रूप कहा जा सकता है ।।
तीर्थंकर परमात्मा की इस शक्ति का अनुभव विश्व के प्रत्येक जीव को तीर्थकर परमात्मा के जीवन के महत्त्वपूर्ण पाँच प्रसंग पर होता है । अतः तीर्थंकर परमात्मा के इन पाँच प्रसंग को कल्याणक कहे जाते हैं ।
1. तीर्थंकर परमात्मा की आत्मा देवलोक में से तीर्थंकर के रूप में जन्म लेने के लिये इस पृथ्वी पर माता के गर्भ में उत्पन्न होते ही उनके आर्हन्त्य के अनुभव के रूप में विश्व की प्रत्येक आत्मा को सुख का अनुभव होता है। | तीर्थंकर के इस अज्ञात | अगोचर | अगम्य किन्तु भव्य प्रसंग को च्यवनकल्याणक कहते हैं |
2. तीर्थंकर परमात्मा का भौतिक शरीर के रूप में अवतरण होने की प्रक्रिया यानि कि जन्म । इस समय उनके तीर्थंकर नामकर्म की पुण्याई की प्रचंड ऊर्जा के प्रभाव से विश्व की प्रत्येक आत्मा को अलौकिक आह्लाद की अनुभूति होती है और सर्वत्र प्रकाश फैल जाता है । अतएव इस प्रसंग को जन्मकल्याणक कहा जाता हैं । गृहस्थ अवस्था में वे जहाँ भी जाते हैं। वहाँ सब का कल्याण करते हैं । उनके जीवन का प्रत्येक क्षण सभी का कल्याण करने वाला होता है ।
3. बादमें आता है आत्मासाधना के अलौकिक प्रक्रिया का मंगल प्रारंभ स्वरूप प्रव्रज्या ग्रहण का क्षण । अभी तक परकल्याण की केवल भावना ही थी । अब उसी भावना को चरितार्थ करने के लिये पुरुषार्थ करने की मंगल शुरूआत होती है । संसारत्याग के इस भव्य प्रसंग को दीक्षाकल्याणक कहते हैं ।
4. संसारत्याग के बाद वे स्व और पर, उभय का कल्याण करने वाली कठिन आत्मसाधना के अंतिम फलस्वरूप केवलज्ञान प्राप्त करते हैं । | तीर्थंकर परमात्मा को कैवल्य प्राप्ति के साथ ही उनके तीर्थंकर नामकर्म की |प्रचंड ऊर्जा का सभी को प्रत्यक्ष अनुभव होने लगता है । यह ऊर्जा इतनी
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