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(168) ता= तब, जिणवरो= जिनवर (मुनि) पयंपइ= कहते हैं, नरिंद= हे राजन्, निसुणेहि= सुनो, एए = ये, चारणा= चारण मुनि, अम्ह= हमारी, नमणत्थं वंदना के लिए, भारहाओ= भारत के, वेअड्ढो= वैताढ्य पर्वत पर, समागया आए हुए हैं।
(169) (वह) चक्कवट्टी= देवादित्य चक्रवर्ती, पुछेइ= पूछता है, भयवं= हे भगवन, भरहवासम्मि= भारत वर्ष के , वेअड्ढम्मि= वैताढ्य पर्वत पर, किं= क्या, को वि= कोई भी, संपइ= हुआ, अत्थि= है।
. (170) जिणो= भगवान् जिनेन्द्र देव, जंपइ= कहते हैं, भरहे= भारत वर्ष में (इस तरह के) नाणी= ज्ञानी, नरिदं= राजा, वा= अथवा, चक्की= चक्रवर्ती, न= नहीं, संपइ= हुए, किं पुण= किन्तु, कुम्मापुत्तो= कूर्मापुत्र, गिहवासे= गृहस्थावस्था में (भी), केवली= केवलज्ञानी, अत्थि= है (थे) ।
(171) चक्कधरो= चक्रवर्ती, पडिपुच्छइ= पुनः पूछता है, भयवं= हे भगवन, किं= क्या, केवली- केवलज्ञानी, घरे = घर पर, वसइ= रहता है, पहू= भगवन, कहइ= कहते हैं, निअअम्मापिउस्स= अपने माता-पिता के, पडिबोहाय = प्रतिबोध के लिए, सो= वह केवली (घर पर), वसइ= रहता है।
(172) ते= वे, चारणा= चारण मुनि, (आकाश में गमन करने की शक्ति वाले जैन मुनियों की एक जाति), भयवं= भगवान् को, पुच्छन्ति= पूछते हैं, अम्हाण= हम लोगों में (कोई) केवलं केवलज्ञान को (प्राप्त), अत्थि= होगा, पहुणा= प्रभू के द्वारा, कहियं कहा गया, तुमं पि= तुम सभी, अचिरेणं= शीघ्र ही, केवलं केवलज्ञान को (प्राप्त), अत्थि= होंगे।
(173) सामिय = हे स्वामी, अम्हाणं- हम सब , सिवगइगामिय = मोक्ष प्राप्त करने वाले, केवलं= केवलज्ञान को, कया= कब (प्राप्त), अत्थि= होंगे / करेंगे (तब), जगदुत्तमो= जगत् में उत्तम, नामजिणिंदो= नामवाले जिनेन्द्र भगवान्, इअ = इस प्रकार, कहिए = कहते हुए, समुद्दिसइ= व्याख्या/ उपदेश (करते हैं) 70
सिरिकुम्मापुत्तचरि
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