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________________ जइधम्माओ= यतिधर्म से (मुनि धर्म से), चुक्को चूका/भ्रष्ट, गिही श्रावक, दाणधम्माओ= दान धर्म से, (भी), चुक्कइ= चूक जाता/ भ्रष्ट हो जाता है। (120) घणगज्जिओवमाणाणि= मेघ की गर्जना की तरह परिमाण वाले, इअ= इस प्रकार के, मुणिवरवयणाइं= मुनि के श्रेष्ठ वचनों को, सुणिउं= सुनकर, देवीए = देवी (कूर्मारानी)का, मणमोरो= मनरूपी मोर, परमसमुल्लाअत्यंत उल्लास से, समावन्नो= सम्पन्न/युक्त हो गया। (121) तत्तो= तब, दिणेसुं= दिनों के, पडिपुण्णेसु= पूर्ण होने पर, (तथा) दोहला= दोहद, संपुण्ण= पूर्ण होने पर, सुहलग्गे= शुभ लग्न (मुहूत्त) और, सुहे= शुभ, वासरम्मि= दिन में, देवी= देवी ने, (एक) पुत्तरयणं= पुत्र रत्न को, पसूया= जन्म दिया। (122) च= और, तत्र= उसी, अवसरे= अवसर पर, तिहां= वहाँ, सुतडयडंत अत्यंत तड़-तड़ की आवाज करने वाला, तूर= तूर्य (तुरही) वाद्य, गयणंगणि= आकाश में, गडयडंत= गड़-गड़ की, गज्जइ= गर्जना होने लगी, वरमंगलशुभमंगल (तथा) भुंगलभेरिनाद= भुंगल नामक वाद्य विषेश का भेरीनाद (होने लगा, और), नफेरी= नफेरी नाम के वाद्य की, नवनिनाद= नूतन आवाज, सुणीइ- सुनाई देने लगी। (123) बंदिवृन्द= अनेक भाट, विरुदावलि= स्तुति, बोल्लइ= गाने लगे, चतुर चतुर, नरवृन्द= मनुष्य के समूह, चिरकाल अखण्ड, अनंद= आनन्द, (लेने लगे), वरकामिणी= सुन्दर रमणियाँ, अइसुरम्म= अत्यंत मोहक, नच्चइनृत्य करने लगी, इअ= इस तरह, पुत्तजम्म= पुत्र जन्म का, उच्छव= उत्सव, हूओ= हुआ। (124) धम्मस्सुयेण= धर्म सुनने के, दोहलानुसारेण= दोहद के अनुसार, अम्मापिऊहि= माता-पिता के द्वारा, तस्स= उसका (पुत्र का), गुणाभिरामं= गुणों से सुशोभित, धम्मदेवु= धर्मदेव, त्ति= ऐसा, नाम= नाम, पइट्ठिअं= रखा गया। 62 सिरिकुम्मापुत्तचरि 858 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002548
Book TitleSirikummaputtachariyam
Original Sutra AuthorAnanthans
AuthorJinendra Jain
PublisherJain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
Publication Year2004
Total Pages110
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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