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(65) अयाणन्तो नहीं जानने वाले, कुमरो वि= उस कुमार को भी, केवलिणा= केवली के द्वारा, समहिअं= अत्यधिक, समाइट्ठो= समझाया गया (उपदेश दिए गए) (अतः), कुमार-कुमार ने, इह= वहाँ, समासीणा= बैठे हुए, मायतायमुणी= माता-पितारूप मुनि की, वंदसु= वंदना की।
(66) केवलिणं केवली को, सो वह कुमार, पुच्छइ= पूछता है, पहु= हे प्रभु! (आप) एसिं= इस, वयगाहो व्रत के आग्रह को (हठ को), कह= कैसे, जओ= प्राप्त हुए, तेण= उन्होंने, वि= भी, तस्स-उसको (अपने), पुत्तविओगाइकारणं= पुत्र के वियोग आदि के कारण को, वज्जरिअं= बतलाया/कहा।
(67-68) इय = इस प्रकार, सुणिअ-सुनकर, जह-जिस प्रकार, मोरो= मोर, जलधरं= जलधर (मेघ) को, व=अथवा, जह= जैसे, चकोरो= चकोर (पक्षी), चंदं चन्द्रमा को, व= अथवा, जह= जैसे, चक्को= चकवा, चंडभाणु तेजस्वी सूर्य को, जह-जैसे, वच्छो= बछड़ा, निअसुरभिं= अपनी गाय को, एव= तथा, कलकण्ठो= कोयल, सुरभिं= संगन्ध से युक्त, सुरभिं= बसन्त ऋतु को, पलोएउं= देखकर, संतुट्ठो संतुष्ट, संजाओ= होते हैं, (उसी प्रकार) सो कुमारो- वह राजकुमार, हरिस= हर्ष, समुल्लसिओ= उल्लसित (एव), रोमंचो= रोमांचित, आनन्दित (शरीर वाला), संजाओ= हो गया।
(69) नियमायतायमुणिणं= अपने माता-पितारूप मुनि के, कंठम्मि= कंठ में (गले में), विलग्गिऊण= लगकर (लिपटकर), रोयन्तो-रोते हुए (कुमार को), जक्खिणीए = यक्षिणी द्वारा, एयाइ= उसी समय, महुरवयणेहिं= मधुर वचनों से, निवारिओ= रोका गया( या सांत्वना दी गई)
(70) सा=वह, जक्खिणी= यक्षिणी, निअवत्थअंचलेणं अपनी साड़ी के आँचल के कपड़े से, कुमारनयणाणि= कुमार के नेत्रों में, अंसुभरियाणि= भरे हुए आँसुओं को, विलूहइ= पौंछती है (वह सोचती है), अहो= अरे, (यह शरीर) महामोहदुल्ललिय= महान् मोह की भयानक/ दुष्ट लीला (वाला है)।
सिरिकुम्मापुत्तचरि
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