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________________ न= न, अर्थो= धन/संपति, न= न, स्वजनो= स्वजन (परिवार के व्यक्ति). न वा और न ही, परिजनः= अन्य दूसरे व्यक्ति, नो= न, शारीरिक शारीरिक, बलं= बल, च= और, नो= न, सततं हमेशा से, शक्ताःशक्तिशाली, सुरासुरवरा= देवता तथा दानव (आदि), आयु= आयु को, संघ तुम्= जोड़ने (वृद्धि) को, क्षमा= क्षमा (कम या ज्यादा कर सकते हैं)। (54) इअ-इस प्रकार, केवलिवयणाइं केवली के वचनों को, सुणिउं-सुनकर, विसण्णचिता दुःखी/ उदास मन वाली, सा=वह, अमरी यक्षिणी, पणट्टसव्वस्स= सभी कुछ नष्ट हुए, सत्थ ब्व= व्यापारी के समान, निअभवणं अपने घर को, संपत्ता पहुँची। (55) सा-उसको (यक्षिणी), दिट्ठा= देखकर, कुमरेणं कुमार के द्वारा, सुकोमलेहिअत्यन्त कोमल (सरस), वयणेहिं वचनों से, पुट्ठा पूछा गया, सामिणि हे स्वामिनी!, अज्ज आज, तुम तुम, केणं किस, हेउणा कारण से, मणे मन में, विसण्णा दुःखी हो। (56) किं क्या, केण वि= किसी के द्वारा, (तुम) दूहविआ= दुःखित की गई हो, वा अथवा, किं=क्या, केण वि=किसी के द्वारा (तुम्हारी), आणा=आज्ञा, न-नहीं, मन्निआ= मानी गई है, वा अथवा, किं=क्या, मह=मेरे, अवराहेण अपराध से, तुम तुम, कुप्पसन्ना-अप्रसन्न, जाया हो गई हो। (57) सा-वह, किंचि वि=कुछ भी, अकहन्ती नहीं कहती हुई, मणे मन में, महाविसायभरं= महान् विषाद के भार को, वहन्ती-ढोती हुई रहती है, पुण=फिर, निबंधे आग्रहपूर्वक, पुट्ठा पूछने पर, सयलं समस्त, वुत्तंत= वृत्तांत को, साहए =कहती है। (58) सामिय =हे स्वामी!, मए =मैंने, अवहिणा=अवधिज्ञान से, तुह= तुम्हारा, जीवियमप्पं अल्प जीवन है, एव=ऐसा, नाऊणं जानकर, केवलिपासे केवली के पास (जाकर,तुम्हारी), आउसरूवं= आयु के स्वरूप को, पुढें= पूछा था, च-और (उन्होंने), कहियं-कहा । 588888888 0000-00- सिरिकुम्मापुत्तचरि 51 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002548
Book TitleSirikummaputtachariyam
Original Sutra AuthorAnanthans
AuthorJinendra Jain
PublisherJain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
Publication Year2004
Total Pages110
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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