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________________ भावो= भाव धर्म, भवुदहितरिणी= संसार रूपी समुद्र को पार करने में (समर्थ है)। भावो= भाव धर्म, सग्गापवग्ग= स्वर्ग एवं मोक्ष, पुरसरणी नगर रूपी नदी है, भवियाणं भव्य/संसारी जीवों के लिए, भावो= भावधर्म, मणचिंतिअ= मन में चिंतन(और), अचिंत= अचिंतनीय, चिंतामणी= चिंतामणि के (समान है) (7) अवगयतत्तो = तत्वों को जानने वाला, य =और अगहियचरित्तो= चारित्र (धर्म) को धारण न करने वाला, (वह) कुम्मापुत्तो= कूर्मापुत्र, भावेण= भावधर्म के द्वारा, गिहवासे= गृहस्थावस्था में, वि=भी, वसंतो रहते हुए, केवलं नाणं केवलज्ञान को, संपत्तो प्राप्त करता है। (8) अच्छरिअं आश्चर्ययुक्त, कुम्मापुत्तस्स = कूर्मापुत्र के, जंजिस, चरिअं-चरित्र को, मे मुझसे, पुच्छसि पूछा है, तं-उसके, समग्गमवि= समग्रस्वरूप को, गोयम हे गौतम!, एगग्गमणो-एकाग्रचित्त, होउं होकर, निसामेसु-सुनो। (9) भारहखित्तस्स भारत क्षेत्र के, मज्झयारंमि मध्यभाग में, जम्बुद्दीवे जम्बूद्वीप नामक, दीवे-द्वीप में, जगप्पहाणं= जग में प्रधान, दुग्गमपुराभिहाणं दुर्गमपुर नामका, पुरं नगर, अस्थि है। (10) य =और, तत्थ वहाँ पर, पयावलच्छीई-प्रताप की काँति से, निज्जिअदिणिंदोसूर्य को जीतता हुआ, दोणनरिंदो = द्रौणराजा, अरियणवज्ज-शत्रु से रहित, निक्कंटयं निश्कंटक, रज्जं राज्य का, णिच्चं नित्य, पालइ पालन करता था। (11) संकरदेवस्स = शंकर देव की, उमा उमा/पार्वती (और), वासुदेवस्स वासुदेव (विष्णु) की, रमारमा (लक्ष्मी) जहा के समान, तस्स-उस, नरिंदस्सराजा की, दुमा द्रुमा, नामेणं नामकी, पट्टराणिआ पटरानी (पत्नी), अत्थि थी। सिरिकुम्मापुत्तचरिअं 43 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002548
Book TitleSirikummaputtachariyam
Original Sutra AuthorAnanthans
AuthorJinendra Jain
PublisherJain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
Publication Year2004
Total Pages110
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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