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________________ अर्थ अर्थ दाणतवसीलभावणभेएहि चउव्विहो हवइ धम्मो । सव्वेसु तेसु भावो महप्पभावो मुणेयव्वो ।। 5 ।। : दान, तप, शील (और) भावना के भेद से धर्म चार प्रकार का होता है। उन सभी में भाव धर्म को महान् भावना वाला जानना चाहिए। भावो भवुदहितरणी भावो सग्गापवग्गपुरसरणी । भवियाणं मणचिन्तिअअचिंतचिंतामणी भावो ।। 6 ।। : भावधर्म संसार रूपी समुद्र को पार करने में (समर्थ है), भाव धर्म स्वर्ग एवं मोक्ष नगरी का मार्ग है। भव्य संसारी जीवों के लिए भावधर्म मन में चिंतनीय व अचिंतनीय चिंतामणि के ( समान है) । 2 भावेण कुम्मापुत्तो अवगयतत्तो य अगहियचरित्तो । गिहवासे वि वसंतो संपत्तो केवलं गाणं || 7 || अर्थ : तत्वों को जानने वाला और चारित्र धर्म को धारण न करने वाला ( वह) कूर्मापुत्र भावधर्म के द्वारा गृहस्थावस्था में रहते हुए भी केवलज्ञान को प्राप्त करता है । इत्थंतरे इन्दभूई नामं अणगारे भगवओ महावीरस्स जिट्टे अंतेवासी गोयमगुत्ते समचउरंससरीरे वज्जरिसहनारायसंघयणे कणयपुलयनिघसपम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे महातवे घोरतवे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्त विउलते उले स्से चउदसपुवी चउणाणोवगए पंचहि अणगारसएहि सद्धि संपरिवुडे छट्टछट्टेणं अप्पाणं भावेमाणे उट्ठाए उट्ठेइ । उट्ठित्ता भयवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ । करिता वंदइ णमंसइ । वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - भयवं ! को णामं कुम्मापुत्तो, कहं वा तेण गिहवासे वसंतेण भावणं अणुत्तरं निव्वाघायं निवारणं कसिणं पडिपुण्णं केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडिअं । तए णं समणं भगवं महावीरं जोयणगामिणीए सुधासमाणीए वाणीए वागरेइ : Jain Education International सिरिकुम्मापुत्तचरिअं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002548
Book TitleSirikummaputtachariyam
Original Sutra AuthorAnanthans
AuthorJinendra Jain
PublisherJain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
Publication Year2004
Total Pages110
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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