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________________ परिशिष्ट "ब" ग्रन्थ में उद्धत पात्रों की सम्बद्ध कथाएँ - भरत को कैवल्य की प्राप्ति भगवान् के निर्वाण के पश्चात् भरत अयोध्या आ गया। कुछ समय बाद वह शोक से मुक्त हो गया और पाँच लाख पूर्व तक भोग-भोगता रहा। एक बार वह सभी अलंकरों से विभूषित होकर अपने आदर्शगृह में गया। वहाँ एक काँच में सर्वाड्.ग पुरुष का प्रतिबिम्ब दिखता था। उसमें वह स्वयं का प्रतिबिम्ब देख रहा था। इतने में ही उसकी अंगूठी नीचे गिर पड़ी। उसको ज्ञात नहीं हुआ। वह अपने पूरे शरीर का निरीक्षण कर रहा था। इतने में ही उसकी दृष्टि अंगुली पर पड़ी। उसे वह असुन्दर लगी। तब उसने अपना कंकण भी निकाल दिया। इस प्रकार वह एक-एक कर सारे आभूषण निकालता गया। सारा शरीर आभूषण रहित हो गया। उसे पद्मविकल पद्मसरोवर की भांति अपना शरीर अशोभायमान लगा। उसके मन में संवेग उत्पन्न हुआ। वह सोचने लगा- 'आगंतुक पदार्थों से विभूषित मेरा शरीर सुन्दर लगता था पर वह स्वाभाविक रूप से सुन्दर नहीं है।' इस प्रकार चिन्तन करते हुए अपूर्वकरणध्यान में उपस्थित भरत को केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई। देवराज शक ने आकर कहा- 'आप द्रव्यलिंग धारण करें, जिससे हम आपका निष्कमण महोत्सव कर सकें। तब भरत ने __ पंचमुष्टि लुंचन किया। देवता ने रजोहरण, पात्र आदि उपकरण प्रस्तुत किए। महाराज भरत दस हजार राजाओं के साथ प्रव्रजित हो गये। शेष नौ चक्रवर्ती हजार-हजार राजाओं सहित प्रव्रजित हुए। शक्र ने भरत की वन्दना की । भरत एक लाख पूर्व तक केवली-पर्याय का पालन कर मासिक संलेखना में श्रवण नक्षत्र में अष्टापद पर्वत पर परिनिर्वृत हो गया। भरत के बाद इन्द्र ने आदित्ययश का अभिषेक किया। इस प्रकार एक के बाद एक आठ पुरुषयुग अभिषिक्त हुए। उसके बाद के राजा उस मुकुट को धारण करने में समर्थ नहीं हुए। इलापुत्र की कथा (असत्कार से सामायिक की प्राप्ति) एक ब्राह्मण मुनियों के पास धर्म सुन-सुनकर अपनी पत्नी के साथ प्रव्रजित हो गया। वह उग्र संयम का पालन करने लगा, परन्तु दोनों की पारस्परिक प्रीति नहीं छूटी “मैं ब्राह्मणी हूँ" इस प्रकार वह साध्वी गर्व सिरिकुम्मापुत्तचरिअं 83 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002548
Book TitleSirikummaputtachariyam
Original Sutra AuthorAnanthans
AuthorJinendra Jain
PublisherJain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
Publication Year2004
Total Pages110
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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