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________________ 50 परिशिष्ट (क) विशिष्ट पारिभाषिक शब्दावली अतिशय : (गाथा, 31 ) विशेष अथवा चमत्कारिक गुणों को अतिशय कहा गया है। सामान्य से हटकर विशेष गुणों की विद्यमानता से घटनाओं के घटने को अतिशय कहा है। ये 34 हैं। जन्म के 10 अतिशय (स्वाभाविक अतिशय ) । केवलज्ञान के 11 अतिशय । देवकृत 13 अतिशय। आराधना प्रकरण 1. 2. 3. अरिहंत : (गाथा, 34 ) जिन्होंने अपने राग-द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ रूप शत्रुओं को समाप्त कर दिया, वे अरिहंत कहलाते हैं । आवश्यक : (गाथा, 54) वसो अवसो अवसस्स, कम्ममावासगं ति बोधव्व । जुत्तित्ति उवायत्ति य णिरवयवा होदि णिजुत्ति ॥ (मू. आ. - 515) अर्थात् जो राग- द्वेष, कषाय आदि के वशीभूत न हो वह 'अवश' है, उस अवश का जो आचरण है वह आवश्यक है, ये छ: प्रकार के होते हैं - 1. सामायिक 2. चतुर्विंशतिस्तव 3. वन्दना 4. 5. प्रत्याख्यान 6. आहार : (गाथा, 60, 66 ) Jain Education International प्रतिक्रमण कायोत्सर्ग । त्रायाणां शरीराणां षण्णां पर्याप्तीनां योग्यपुद्गलग्रहणमाहारः । ( स. सि. 2/30) अर्थात् तीन शरीर और छ: पर्याप्तियों के योग्य पुद्गलों के ग्रहण करने को आहार कहते हैं । यह चार प्रकार का है - 1. अशन 2. पान 3. खादिम 4. स्वादिम । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002547
Book TitleAradhana Prakarana
Original Sutra AuthorSomsen Acharya
AuthorJinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
PublisherJain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
Publication Year2002
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Spiritual
File Size3 MB
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