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करो ।
एवं गुरुव', पज्जंताराहणं निसुणिऊणं' ।
वोसिट्ठ सव्व पावो, तहेव आसेवए एसो ॥ 67 ॥
अन्य : एवं गुरुवइटुं पज्जंताराहणं निसुणिऊणं सव्व पावो वोसिट्ठ तहेव एसो
आसेवए ।
अनुवाद : इस प्रकार गुरु निर्दिष्ट पर्यन्ताराधना को सुनकर सारे पाप समाप्त हो गये । इसी परम्परा से इसका आचरण भी करना चाहिए।
पंचपरमिट्टिसमरण--परायणो पाविऊण' पंचत्तं ।
पत्तो
अन्वय : पंचपरमिट्टि - समरण-परायणो पाविऊण ( जीवो) पंचत्तं पंचमकप्पंमि रायसिंहो सुरिंदत्तं पत्तो ।
अनुवाद : पांच परमेष्ठियों के स्मरण में परायण (अनुरक्त ) जीव मृत्यु को प्राप्त कर पंचमकल्प (पांचवे स्वर्गलोक) में राजसिंह कुमार नामक जीव सुरेन्द्रत्व को प्राप्त करता है ।
तप्पत्तीरयणवई, तहेव आराहिऊणं तं कप्पे ।
सामाणिअत्त पत्तो, दोवि' चुआ निव्वुइस्संति ॥ 69 ॥
अन्वय : तप्पत्ती रयणवई तहेव आराहिऊणं (पंच कप्पंमि) सामाणिअत्त पत्तो (पंचं कप्पंमि) दोवि चुआ निव्वुइस्संति ।
अनुवाद : उसकी (राजसिंह की ) पत्नी रत्नवती ने उसी प्रकार ( पंचपरमेष्ठी की ) आराधना करके उसी कल्प में सामानिकत्व को प्राप्त किया । वहाँ से (पंचम देवलोक से ) दोनों (राजसिंह एवं उसकी पत्नी रत्नावती) च्युत होकर निर्वाण को प्राप्त करेंगे।
आराधना प्रकरण
1. (अ) गुरुपइट्ठ
4. (ब) आराहिऊण
7. (ब) पसमजणं
सिरिसोसूरिरइअं पज्जंताराहणं पसमजणणं ।
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जे अणुसरंति सम्मं, लहंति ते सासयं सुक्खं ॥ 70 ॥ अन्वय : सिरिसोमसूरिरइअं पज्जंताराहणं पसमजणणं जे सम्मं अणुसरंति ते सासयं
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पंचमकप्पंमि, रायसिंहो सुरिंदत्तं ॥ 68 ॥
2. निसुणिउणं
5. (अ) तिहिं
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3. (अ) पाविउण
6. कप्पो
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