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________________ 48 करो । एवं गुरुव', पज्जंताराहणं निसुणिऊणं' । वोसिट्ठ सव्व पावो, तहेव आसेवए एसो ॥ 67 ॥ अन्य : एवं गुरुवइटुं पज्जंताराहणं निसुणिऊणं सव्व पावो वोसिट्ठ तहेव एसो आसेवए । अनुवाद : इस प्रकार गुरु निर्दिष्ट पर्यन्ताराधना को सुनकर सारे पाप समाप्त हो गये । इसी परम्परा से इसका आचरण भी करना चाहिए। पंचपरमिट्टिसमरण--परायणो पाविऊण' पंचत्तं । पत्तो अन्वय : पंचपरमिट्टि - समरण-परायणो पाविऊण ( जीवो) पंचत्तं पंचमकप्पंमि रायसिंहो सुरिंदत्तं पत्तो । अनुवाद : पांच परमेष्ठियों के स्मरण में परायण (अनुरक्त ) जीव मृत्यु को प्राप्त कर पंचमकल्प (पांचवे स्वर्गलोक) में राजसिंह कुमार नामक जीव सुरेन्द्रत्व को प्राप्त करता है । तप्पत्तीरयणवई, तहेव आराहिऊणं तं कप्पे । सामाणिअत्त पत्तो, दोवि' चुआ निव्वुइस्संति ॥ 69 ॥ अन्वय : तप्पत्ती रयणवई तहेव आराहिऊणं (पंच कप्पंमि) सामाणिअत्त पत्तो (पंचं कप्पंमि) दोवि चुआ निव्वुइस्संति । अनुवाद : उसकी (राजसिंह की ) पत्नी रत्नवती ने उसी प्रकार ( पंचपरमेष्ठी की ) आराधना करके उसी कल्प में सामानिकत्व को प्राप्त किया । वहाँ से (पंचम देवलोक से ) दोनों (राजसिंह एवं उसकी पत्नी रत्नावती) च्युत होकर निर्वाण को प्राप्त करेंगे। आराधना प्रकरण 1. (अ) गुरुपइट्ठ 4. (ब) आराहिऊण 7. (ब) पसमजणं सिरिसोसूरिरइअं पज्जंताराहणं पसमजणणं । ? जे अणुसरंति सम्मं, लहंति ते सासयं सुक्खं ॥ 70 ॥ अन्वय : सिरिसोमसूरिरइअं पज्जंताराहणं पसमजणणं जे सम्मं अणुसरंति ते सासयं Jain Education International पंचमकप्पंमि, रायसिंहो सुरिंदत्तं ॥ 68 ॥ 2. निसुणिउणं 5. (अ) तिहिं For Private & Personal Use Only 3. (अ) पाविउण 6. कप्पो www.jainelibrary.org
SR No.002547
Book TitleAradhana Prakarana
Original Sutra AuthorSomsen Acharya
AuthorJinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
PublisherJain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
Publication Year2002
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Spiritual
File Size3 MB
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