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आराधना प्रकरण
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च गरिहामि। अनुवाद : 'जिन' के द्वारा उपदिष्ट बाह्य और आभ्यन्तर बारह प्रकार के तप को
अपनी सामर्थ्य के अनुसार जो (मैंने) नहीं किया, उसकी (मैं) निंदा व गर्दा करता हूँ।
जोगेसु मुक्खपहसाहगेसु, जं वीरिअंन य पहुत्तं'।
मणवायाकाएहिं, तं निंदेतं च गरिहामि ॥25॥ अन्वय : मुक्खपहसाहगेसु, जोगेसु मणवायाकाएहिं, जं पहुत्तं वीरिअंन (कअं) तं
निंदेतं च गरिहामि। अनुवाद : मोक्ष साधक उपायों में मन, वचन व काय से मैंने सामर्थ्यानुसार प्रभूत
रूप से शक्ति नहीं लगाई (आचरण नहीं किया) उसकी (मैं) निंदा व गर्दा करता हूँ। पाणाइवायविरमण, पमुहाई तुमं दुवालसवयाई।
सम्मं परिभावंतो, भणसु जहा गहिआभंगाइं ॥ 26॥ अन्वय : पाणाइवायविरमण, पमुहाइ दुवालसवयाई सम्मं परिभावंतो, जहा अभंगाई
तुमं गहिअं (तं) भणसु। अनुवाद : प्राणातिपात विरमण आदि प्रमुख बारह व्रतों को सम्यक् रूप से भावित
करते हुए जैसे भंग रहित निरन्तर (आपने) ग्रहण किया है, (पाला है) उसे कहो -
खामेसु सव्वसत्ते, खमेसु तेसिं तुमं विगय कोवो।
परिहरिअ पुव्ववेरो, सव्वे मित्तिं त्ति चिंतेसु॥27॥ अन्वय : तुमं सव्वसत्ते खामेसु कोवो विगय तेसिं खमेसु पुव्ववेरो परिहरिअ सव्वे
(जीवेसु) मित्तिं त्ति चिंतेसु। अनुवाद : तुम समस्त जीवों से क्षमा याचना करो। क्रोध शमन करके उनको क्षमा
प्रदान करो। पूर्व जन्मों के बैर को त्याग कर सभी जीवों में मैत्रीभाव का चिन्तन करो। पाणाइवायमलीकं - चोरिकम्मं मेहुणं'।
दविणमुच्छं कोहंमाणं, मायं, लोभं, पिजं तहा दोसं॥28॥ 1. न य पहुत्तं के लिए अ प्रति में मणप्पहत्तं दिया गया है। 2. (ब) इं 3. (अ) भणुसु, ब - ज भणसु 4. (अ, ब) गहिअभंगाई 5. (अ) वो, 6. (अ) मित्ति, ब - मित्त 7. (अ) मिलिअं 8. (अ, ब) चोरिकं 9. (अ) मिहुणं
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